परियोजनाओं के दिए जख्म बने नासूर
संवाद सहयोगी, उत्तरकाशी
सीमांत जिले के विनाशकारी भूकंप का केंद्र रहा असी गंगा घाटी क्षेत्र में जल विद्युत परियोजनाओं के नाम पर पहुंचाया नुकसान अब मवाद बनकर फूट रहा है। तीन जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के दौरान इस संवेदनशील हिस्से में भारी मात्रा में विस्फोट व बड़ी मशीनों से पहाड़ों की खुदाई से अब तक करीब 20 किमी के हिस्से में फैला क्षेत्र दरक रहा है।
असी गंगा घाटी में हर ओर तबाही के पीछे जल विद्युत परियोजनाओं के बेतरतीब निर्माण की बड़ी भूमिका है। जून 2012 से पहले असी गंगा पर असी गंगा प्रथम, द्वितीय व कल्दीगाड परियोजनाओं का निर्माण चल रहा था। पहाड़ों का सीना चीरकर सुरंग के निर्माण से लेकर बड़े-बड़े ट्रकों के लिए सड़कें तैयार की गई। इस काम के लिए अंधाधुंध ब्लास्टिंग की गई। शांत मानी जाने वाली इस घाटी में चौबीसों घंटे बड़ी मशीनों की गड़गड़ाहट लगातार गूंजती रही। विकास के नारे के साथ विनाश बदस्तूर जारी रहा। जून 2012 में असी गंगा में आई बाढ़ ने भले ही परियोजनाओं पर ब्रेक लगा दिया, लेकिन परियोजनाओं के दिए जख्म रिसने लगे। 2013 में भारी बारिश से यही जख्म फिर हरे हुए व तबाही का सिलसिला जारी रहा। वर्ष 1991 में उत्तरकाशी में आए विनाशकारी भूंकप का केंद्र असी गंगा घाटी क्षेत्र ही था। 6.8 रिक्टर स्केल पर आए इस भूंकप का केंद्र असी गंगा घाटी (केलसू) में अगोड़ा गांव के ऊपरी हिस्से में था। इस जबरदस्त भूंकप के बाद खुद भूगर्भीय वैज्ञानिकों ने भी इस हिस्से में भारी निर्माण कार्य समेत पहाड़ियों को नुकसान ना पहुंचाने की हिदायत दी थी। भूकंप को झेलकर कमजोर हो चुकी पहाड़ियों में परियोजना निर्माण के लिए हुए विस्फोटों ने फिर से पहाड़ियों को हिलाकर रख दिया। आलम यह है कि पूरा असी गंगा क्षेत्र दरक रहा है। चींवा से लेकर असी गंगा घाटी का आखिरी हिस्सा तक संवेदनशील हो चुका है। इस इलाके में अब हर गांव, सड़क व पैदल रास्ता भूस्खलन की चपेट में है। ऐसे में इन गांवों का वजूद पूरी तरह खतरे में है।
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भूगर्भीय संरचना के लिहाज से असी गंगा घाटी अत्यंत संवेदनशील है। इस क्षेत्र में भारी निर्माण करना उचित नहीं है। अभी घाटी की स्थिति का और अध्ययन किया जा रहा है। सुरक्षित स्थानों को चिह्नित किया जाएगा ताकि प्रभावित होने वाली आबादी का पुनर्वास हो सके।
-विपिन चंद्र, भू-विशेषज्ञ, आपदा प्रबंधन प्राधिकरण।
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