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लावारिस लाशों का सारथी

अरविंद कुमार सिंह, काशीपुर जज्बा होना चाहिए, इंसान किसी भी तरह से सेवा कर सकता है। मानवता के ऐस

By Edited By: Published: Sat, 27 Aug 2016 04:40 PM (IST)Updated: Sat, 27 Aug 2016 04:40 PM (IST)
लावारिस लाशों का सारथी

अरविंद कुमार सिंह, काशीपुर

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जज्बा होना चाहिए, इंसान किसी भी तरह से सेवा कर सकता है। मानवता के ऐसे ही विरले सेवक हैं विजय कुमार, सबसे अलग और अपने कर्मो से यह विश्वास दिलाने वाले कि इंसानियत अभी खत्म नहीं हुई है। लोग जीवित लोगों की सेवा करते हैं पर विजय मर चुके लोगों की। सेवा का अंदाज भी अलग है। अंतिम यात्रा के सारथी विजय स्वर्ग वाहन से नि:स्वार्थ भाव से लावारिस शवों को श्मशान घाट तक पहुंचाते हैं और दाह-संस्कार में मदद भी करते हैं।

किसी के घर में मौत हो जाए तो कम लोग ही शव को हाथ लगाते हैं। और यदि शव किसी लावारिस का हो तो लोग उसे छूने तक को तैयार नहीं होते। शव सड़ा-गला हो तो लोग कपड़े से मुंह ढक दूर से ही निकल जाते हैं। ऐसे शवों को विजय सारथी बनकर श्मशान घाट तक पहुंचाते हैं। कहानी शुरू होती है करीब 11 साल पहले से। मोहल्ला सिंघान निवासी विजय कुमार उर्फ बिज्जू के घर के सामने दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. डीएन मुल्तानी रहा करते थे जो पंजाबी सभा के अध्यक्ष भी थे। एक दिन बातों-बातों में डा.मुल्तानी ने शवों को वाहन से श्मशान घाट ले जाने का प्रस्ताव रखा तो विजय ने हामी भर दी। पंजाबी सभा ने इसके लिए एक छोटा वाहन खरीदा और नाम रखा-स्वर्ग वाहन, जो वास्तव में लावारिस शवों के लिए स्वर्ग के दूत जैसा है। लावारिश शवों का धर्म के आधार पर दाह संस्कार करने के लिए ¨हदू कल्याण समिति बनाई गई। विजय इस वाहन का चालक बने और सारथी के तौर पर शवों को ढोने लगे। पिछले चार साल से लावारिस शव भी इस वाहन से ढोए जा रहे हैं। इस काम के लिए विजय एक धेला भी नहीं लेते हैं। नि:स्वार्थ भाव से गरीबों की अंतिम यात्रा का सारथी बन शवों को श्मशान पहुंचाते हैं। इन चार वर्षो में करीब सौ लावारिस शवों के सारथी बन चुके हैं। हालांकि सक्षम परिवारों से शव को श्मशान पहुंचाने के तीन सौ रुपये लिए जाते हैं। पुलिस जब लावारिश शव का दाह संस्कार करती है तो समिति एक क्विंटल लकड़ी देती है।

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मां से मिली प्रेरणा

काशीपुर : विजय बताते हैं कि वर्ष 2009 में उनकी माता तारावंती का निधन हो गया। देह त्यागने से पहले उन्हें बुलाकर कहा था कि विजय सब कुछ छोड़ देना, मगर लावारिश शवों को स्वर्ग वाहन से ढोने का काम मत छोड़ना। मां की यह बात उन्होंने गांठ बांध ली। कहते हैं, जब तक शरीर साथ देगा, यह कार्य करते रहेंगे। इससे बहुत संतुष्टि मिलती है। जिसका कोई नहीं, उसका मैं हूं।


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