राणा के स्वाभिमान से ही जगेगा ¨हदुत्व
सितारगंज : स्वाभिमान, स्वाभिमान, स्वाभिमान। यह शब्द जितना बड़ा है, ऊंचाई उससे भी कई गुना अधिक। इस शब्
सितारगंज : स्वाभिमान, स्वाभिमान, स्वाभिमान। यह शब्द जितना बड़ा है, ऊंचाई उससे भी कई गुना अधिक। इस शब्द की साख को बचाने के लिए आदमी को अपना सर्वस्व कुर्बान कर देना पड़ता है। शायद यही इस शब्द की ताकत है कि हारते हुए योद्धा को भी जीत के शिखर तक पहुंचा देती है।
सितारगंज के लिए शनिवार का दिन कई मायनों में अहम रहा। महाराणा प्रताप की मूर्ति के अनावरण के बहाने आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने ¨हदुत्व का स्वाभिमान ही जगाने की कोशिश नहीं की, बल्कि स्वाभिमान के बलबूते दुनिया पर ¨हदुत्व का परचम लहराने की बात कही। उन्होंने चाणक्य को स्वयं का अभिमान सिखाने वाला पहला महापुरुष बताया। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जिसके अंदर स्वाभिमान है, वह कभी गुलाम नहीं बन सकते। राणा प्रताप इसके उदाहरण हैं। जिन्होंने तमाम मुश्किलों के बावजूद 25 हजार सैनिकों के जरिये अकबर के एक सैनिकों को धूल चटा दी। इस दौरान जहां वह ¨हदुत्व को धार देने में सफल रहे। वहीं दूसरी ओर उन्होंने देवभूमि से कई अहम संदेश भी दिए। आने वाले दिनों में उत्तराखंड के साथ ही देश की सियासत पर असर पड़ना तय है। बात कुछ भी हो लेकिन हकीकत यही है कि देवभूमि में मोहन भागवत बदले-बदले अंदाज में दिखे। उन्होंने जनसभा में मौजूद विभिन्न समुदाय के लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ने की कोशिश की। वैसे तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विस्तार पूरे उत्तराखंड में है, लेकिन आरएसएस प्रमुख ने सितारगंज की सम्मेलन के सहारे उसमें जोर भरने की पूरी कवायद की। उनका पूरा फोकस देश की उन्नति में था। जाति-पाति और धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर देश हित में कार्य करने का मंत्र दिया। उनका कहना था अगर किसी धर्म में कुछ गड़बड़ है तो उसे ठीक करेंगे। दूसरे धर्म की अच्छी चीजों को उसमें समाहित करेंगे पर अपना अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे। आरएसएस प्रमुख को सुनने के लिए उमड़ी उत्साहित भीड़ भी अपने नेता की बातों से सहमत दिखाई दी। यही कारण था कि उनके भाषण की समाप्ति पर मैदान 'भारत माता की जय' से गूंज उठा।