सिल्ट फ्री टिहरी डैम चलेगा 160 साल
अनुराग उनियाल,नई टिहरी
टीएचडीसी का टिहरी बांध 160 साल बाद सिल्ट (गाद)की चपेट में आएगा। उस वक्त सिल्ट के चलते टिहरी बांध की टरबाइनों की रफ्तार थम जाएगी और सिल्ट साफ करने के बाद ही बांध से बिजली उत्पादन हो सकेगा।
रूस की तकनीक से बना टिहरी बांध दुनिया के बड़े बांधों में से एक है। टिहरी बांध पर भारत सरकार ने आठ हजार 600 करोड़ रुपया खर्च किया और 1972 से टिहरी बांध की निर्माण की प्रक्रिया शुरु हो गई थी। इसके बाद 1995 से बांध का असली निर्माण शुरु किया गया। दस सालों में बना टिहरी बांध इंजीनियरिंग का बेमिसाल उदाहरण है। इस बांध की खासियत है कि इस बांध पर सिल्ट का कोई असर नहीं होता। मानसून के दौरान प्रदेश के सभी बांधों सिल्ट के चलते बिजली उत्पादन ठप हो जाता है। इनमें मनेरी भाली फेस वन और फेस टू सहित विष्णुप्रयाग परियोजना शामिल है। जहां सिल्ट से विद्युत उत्पादन ठप हो जाता है, लेकिन टिहरी बांध में सिल्ट का कोई असर नहीं होता है। टीएचडीसी ने टिहरी बांध को रॉक फिल और सिल्ट फ्री बनाया है। इस वजह से सिल्ट का टिहरी बांध पर कोई असर नहीं होता। टिहरी बांध झील की लंबाई 75 किलोमीटर है इस वजह से बरसात के दौरान नदियों में आने वाली सिल्ट टरबाइन तक नहीं पहुंच पाती। कुल 42 स्क्वायर किलोमीटर में फैली टिहरी झील की टरबाइनों तक सिल्ट पहुंचने में 160 साल लगेंगे। तब तक टिहरी बांध को सिल्ट से कोई खतरा नहीं।
'160 साल तक टिहरी बांध में सिल्ट का कोई असर नहीं होगा। उसके बाद ही सिल्ट कोई असर डाल पाएगी। '
एएन त्रिपाठी, एजीएम , टीएचडीसी, भागीरथीपुरम , टिहरी गढ़वाल
टिहरी बांध की खास बातें
-दुनिया का चौथा और एशिया का सबसे बड़ा रॉकफिल बांध
- 8600 करोड़ रुपये में बना टिहरी बांध
- 1000 मेगावाट का होता है उत्पादन
- 38 किलोमीटर लंबी है बांध की सुरंग
- माइलस्टोन प्रोजेक्ट का अवार्ड मिला है बांध को
- दस साल में बनकर हुआ तैयार टिहरी बांध
- 75 किलोमीटर लंबी है टिहरी बांध की झील