झील की गहराई में खो गई स्नो ट्राउट
रघुभाई जड़धारी. प्रस्तावित
संवाद सहयोगी, चम्बा: टिहरी झील में भले ही मत्स्यपालन को बढ़ावा देने की बात की जा रही हो लेकिन यहां की प्रमुख मछली स्नो ट्राउट तो झील से गायब हो गई है। झील में अब कहीं भी स्नो ट्राउट दिखाई नही देती है। झील की गहराई अधिक होने के कारण अब स्नो ट्राउट मछली झील में फिर कभी पैदा नही हो सकती है।
कभी भागीरथी व भिलंगना नदी की प्रमुख मछली रही स्नो ट्राउट टिहरी झील बनने के बाद अब गायब हो गई है। झील में महाशीर जैसी अन्य प्रजातियों की मछलियां तो तेजी से बढ़ रही हैं लेकिन स्नो ट्राउट की प्रजाति यहां से गायब हो चुकी है। करीब 42 वर्ग किमी जहां तक टिहरी झील फैली है वहां कहीं भी स्नो ट्राउट अब दिखाई नही देती है। ताजा शोध में यह जानकारी सामने आई है। एसआरटी परिसर के जंतु विज्ञान के प्रोफेसर व मत्स्य वैज्ञानिक प्रो. एन के अग्रवाल ने अपने शोध में पाया कि टिहरी जलाशय दूसरी मछलियों के लिए तो वरदान साबित हो रहा है लेकिन स्नो ट्राउट मछली झील के कारण गायब हो गई है। शोध में यह बात सामने आई कि स्नो ट्राउट गहरे पानी व गंदगी में रहना पसंद नही करती है। वह या तो पलायन कर जाती है या फिर वहीं खत्म हो जाती है।
पहले नदी में थी स्नो ट्राउट की बहार
झील बनने से पहले भागीरथी व भिलंगना में नदी में स्नो ट्राउट भारी तादात में पाई जाती थी। यह मछली स्थानीय लोगों के आहार का मुख्य हिस्सा हुआ करती थी। लेकिन टिहरी जलाशय की अधिक गहराई और उसमें लगातार जमा हो रही गंदगी से स्नो ट्राउट का प्राकृतिक आवास व प्रजनन प्रभावित हुआ है। नदी में मछली का शिकार करने वालों को भी अब स्नो ट्राउट कम ही दिखाई देती है।
उच्च हिमालयी क्षेत्रों की नदियों में स्नो ट्राउट प्रमुख मछली है। यह बहते हुए स्वच्छ पानी, कम गहराई में रहना पसंद करती है। टिहरी जलाशय का मछली के प्राकृतिक आवास से मेल नहीं खात। इसलिए स्नो ट्राउट यहां प्रजनन नहीं कर पा रही। यही कारण है कि अब यह मछली यहां से गायब होती जा रही है।
प्रो.एनके अग्रवाल, मत्स्य वैज्ञानिक एसआरटी परिसर बादशाहीथौल