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'एचओएम' से पता चलेगा कितने हैं गुलदार

जागरण संवाददाता, नई टिहरी: जिले में पहली बार वन्यजीवों की गणना होने जा रही है। हैबीटेट आक्यूपेंसी मे

By Edited By: Published: Wed, 25 Nov 2015 04:59 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2015 04:59 PM (IST)
'एचओएम' से पता चलेगा कितने हैं गुलदार

जागरण संवाददाता, नई टिहरी: जिले में पहली बार वन्यजीवों की गणना होने जा रही है। हैबीटेट आक्यूपेंसी मेथड (एचओएम) विधि से वन्यजीवों की गणना का काम 10 से 13 दिसंबर तक चलेगा। इसके बाद रिपोर्ट तैयार कर भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून को भेजी जाएगी। जिसके बाद कैमरा ट्रैप लगाकर वन विभाग वन्यजीवों की निर्णायक सूची तैयार करेगा।

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अभी तक टिहरी जिले में वन्यजीवों की गिनती नहीं की गई थी। अब वन विभाग हैबीटेट आक्यूपेंसी मेथड से गुलदार, भालू, घुरल और अन्य वन्यजीवों की गिनती करेगा। इसके लिए तिथि निर्धारित कर दी गई है। हैबीटेट आक्यूपेंसी मेथड से वन्यजीवों के प्रवास स्थल पर वनकर्मी जाते हैं और वहां से उनके आने-जाने के रास्तों पर नजर रखते हैं। वहीं पर वन्यजीवों के पदचिन्हों के चित्र लिए जाते हैं और उनका अध्ययन किया जाता है। इससे क्षेत्र में वन्यजीवों की संख्या का पता चलता है। लेकिन यह विधि कितनी कारगर होगी इसमें बारे में कहना मुश्किल है। वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों में सभी स्थानों पर जाने में भी वनकर्मियों को मुश्किल आएगी। ऐसे में सभी वन्यजीवों के पदचिन्ह विभाग ले पाएगा यह भी संभव नहीं है। हालांकि विभाग का कहना है कि पहले वन्यजीवों के वास स्थल के बारे में जानकारी ली जाएगी। उसके बाद उनकी लगभग संख्या का आंकलन किया जाएगा।

'वन्यजीवों की गणना के लिए कैमरा ट्रैप सबसे बेहतर है। हैबीटेट आक्यूपेंसी मेथड से सटीक जानकारी नहीं मिल पाती है। लेकिन एक लगभग संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है।'-डॉ. विजय प्रकाश सेमवाल, असिस्टेंट प्रोफेसर जंतु विज्ञान, पीजी कॉलेज नई टिहरी

'10 से 13 दिसंबर तक गणना का कार्य किया जाएगा। यहां से प्राथमिक रिपोर्ट बनाकर वन्यजीव संस्थान को दी जाएगी जिसके बाद वहां से कैमरा ट्रैप यहां पर लगाए जाएंगे।'-हेमशंकर मैंदोला, उप प्रभागीय वनाधिकारी, टिहरी गढ़वाल

कैमरा ट्रैप है कारगर

वन्यजीवों के संभावित प्रवास स्थलों में कई कैमरा ट्रैप लगा दिए जाते हैं। कई महीनों तक यह कैमरे वहां पर पेड़ या घास में छिपाकर रखे जाते हैं। उसके बाद इन कैमरों में आए चित्रों की मदद से वन्यजीवों की गणना की जाती है। वहीं कई बार किसी वन्यजीव पर रिसर्च के लिए कॉलर डिवाइस का प्रयोग किया जाता है।


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