प्रकृति की मार, नहीं सुन रहा कोई पुकार
संवाद सहयोगी, नई टिहरी: टिहरी जिले के सीमांत गांव आपदा की दोहरी मार झेल रहे हैं। इन गांवों कें ग्राम
संवाद सहयोगी, नई टिहरी: टिहरी जिले के सीमांत गांव आपदा की दोहरी मार झेल रहे हैं। इन गांवों कें ग्रामीणों ने पहले भूकंप की त्रासदी झेली और अब आपदा की मार झेल रहे हैं। भूकंप और आपदा की दृष्टि से यह गांव संवेदनशील है। ग्रामीण पिछले एक दशक से विस्थापन की बाट जोह रहे हैं। इन गांवों का भू-गर्भीय सर्वेक्षण भी किया गया और विस्थापन की सूची में भी हैं बावजूद इसके अभी तक मामला आगे नहीं बढ़ पाया है।
जिले के कोट, मेड, मरवाड़ी, पिंसवाड़, अगुंडा, निवाल गांव, आपदा की दृष्टि से संवेदनशील हैं। वर्षो यह गांव आपदाओं से जूझ रहे हैं। पहले भूकंप और अब आपदा ने गांवों का भूगोल ही बदल दिया। 1991 में आए भूकंप से सबसे ज्यादा नुकसान बूढ़ाकेदार क्षेत्र में हुआ था। भूकंप से आगर गांव में तीन, मेड में दो, निवाल गांव में तीन, मरवाड़ी में दो लोगों की जान गई और कई मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे। इस त्रासदी से गांव उबरा भी नहीं था कि वर्ष 2000 में बादल फटने से क्षेत्र में डेढ़ दर्ज से अधिक लोगों की मौत हुई और कई मकान जमींदोज हो गए थे। तब से ग्रामीण आपदा की मार झेलते आ रहे हैं। आज भी इन गांवों के मकानों में दरारें पड़ी है। बरसात का मौसम आते ही ग्रामीण सहम जाते हैं। आलम यह है कि बरसात में गांव छोड़कर ग्रामीण कुछ महीनों के लिए अपनी छानियों में चले जाते हैं।
'आपदा की दृष्टि से यह गांव संवेदनशील हैं। हर बरसात में गांवों के ऊपर पड़ी दरार चौड़ी होती जा रही है। बारिश में ग्रामीण सहम जाते है। इसके बाद भी अभी तक ग्रामीणों का विस्थापन नहीं हो पाया है।'-धर्म सिंह जखेड़ी, पूर्व प्रधान पिंसवाड़
'विस्थापन के लिए शासन ने पांच लोगों की एक समिति बनाई है। समिति शीघ्र ही इसकी जांच करेगी और अपनी रिपोर्ट शासन को भेजेगी। उसके बाद ही आगे की कार्रवाई होगी।'-प्रवेशचंद्र डंडरियाल, एडीएम टिहरी