सर्वेक्षण में ही फंसी विस्थापन की फाइलें
संवाद सहयोगी, नई टिहरी: आपदा प्रभावित गांव वर्षो से विस्थापन की राह ताक रहे हैं। संवेदनशील श्रेणी में रखे गए इन गांवों का अभी तक न तो विस्थापन किया गया और ना ही सुरक्षा के कोई उपाय। भू-सर्वेक्षण के बाद भी अभी तक मामला आगे नहीं बढ़ पाया है।
जिले में वर्ष 2002 से शुरू हुई आपदा से अब तक 61 गांव एवं तोक भूस्खलन की चपेट में हैं। इन गांवों के ग्रामीणों को अन्यत्र बसाने के लिए भू-वैज्ञानिकों ने समय-समय पर सर्वेक्षण भी किया। इनमें कुछ गांव ऐसे हैं जिनके लिए जगहों का भी चिह्नीकरण किया गया लेकिन यह जगह सुरक्षित है भी या नहीं इसका पता भी सर्वेक्षण रिपोर्ट के बाद ही पता चल पाएगा। बरसात शुरू होने के बाद भी इन गांवों में भूस्खलन सक्रिय हो गया है जिस कारण ग्रामीणों की परेशानी बढ़ी है। जिले के मरवाड़ी, अंगुडा, मेड आदि गांवों में वर्ष 2002 में भूस्खलन से भारी जन हानि हुई थी। भिलंगना पिंसवाड़, उर्णी, मरवाड़ी के ग्रामीणों ने बरसात के कारण छानियों की ओर रूख कर दिया है।
वहीं नरेंद्रनगर प्रखंड के डौंर गांव में भी वर्ष 2010 में आई आपदा से छह लोगों की मौत हो गई थी। तब से गांव के डेढ़ दर्जन परिवार नरेंद्रनगर व आस-पास के क्षेत्रों में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं। पिंसवाड़ के भरत सिंह, मरवाड़ी के मोर सिंह का कहना है कि बारिश में भूस्खलन शुरू हो गया है। कई लोग गांव छोड़कर सुरक्षित जगहों को चलते गए हैं।
आपदा प्रभावित गांवों में क्षेत्र के एसडीएम को बराबर नजर रखने को कहा गया है। गांव में किसी भी प्रकार की परेशानी होती है तो प्रशासन वहां पर सुविधाएं मुहैया करवाएगा।
प्रवेशचंद्र डंडरियाल
अपर जिलाधिकारी टिहरी।