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उत्‍तराखंड बनने के बाद भी सीमांत गांव की स्थिति जस की तस

टिहरी के कुछ सीमांत गांव ऐसे हैं जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। यहां के लोगों को यदि परिवार रजिस्टर की नकल लेनी है तो उन्हें करीब 120 किमी की दूरी तय करने करनी पड़ती है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 12:33 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 08:26 PM (IST)
उत्‍तराखंड बनने के बाद भी सीमांत गांव की स्थिति जस की तस
उत्‍तराखंड बनने के बाद भी सीमांत गांव की स्थिति जस की तस

चंबा, जेएनएन। टिहरी जनपद के कुछ सीमांत गांव ऐसे हैं जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। स्थिति यह है कि यहां के पसनी, बमेंडी, घुड़साल गांव, बनाली के लोगों को यदि परिवार रजिस्टर की नकल लेनी है तो इसके लिए उन्हें करीब 120 किमी की दूरी तय करने करनी पड़ती है और इसमें तीन दिन का समय लग जाता है।

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जनपद के प्रखंड चंबा के देहरादून रायपुर की सीमा पर बसे घुड़सालगांव, पसनी, बमेण्डी, बनाली के ग्रामीणों की सुध लेने वाला कोई नही है। इनके लिए सबसे पुरानी समस्या है अभी तक उसका समाधान ही नही हो पाया है। शासन-प्रशासन ने इन गांवों को इस तरह उलझा रखा है कि यदि किसी ग्रामीण को परिवार रजिस्टर की नकल चाहिए तो उसे इसके लिए खूब पसीना बहाना पड़ता है। 

चंबा ब्लॉक के तहत पडऩे वाले इन गांवों की न्याय पंचायत पलास नागणी है जो तहसील धनोल्टी में है। न्याय पंचायत में जाकर यदि किसी ग्रामीण को परिवार रजिस्टर की नकल या जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करना है तो उसे सबसे पहले गांव से बीस किमी की दूरी तय कर रायपुर पहुंचना पड़ेगा। फिर वहां से ऋषिकेश होते हुए कुल 120 किमी की दूरी तय कर नागणी पहुंचना पड़ता है। जिसमें आधा दिन से अधिक का समय लग जाता है। यदि उसी दिन विभाग के अधिकारी मिल भी गए और काम भी हो गया तो गांव के लिए वापसी नहीं हो सकती है। 

ऐसे में ग्रामीणों को होटल में रुकना पड़ता है और उसके बाद दूसरे या तीसरे दिन वापसी होती है। इसी तरह विकासखंड मुख्यालय व जिला मुख्यालय में कोई काम करवाना है तो करीब 140 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है जिसमें कम से कम तीन दिन लग जाते हैं। यदि विभागों के अधिकारी कर्मचारी नहीं मिले और काम नहीं हुआ तो फिर कई दिनों तक होटलों में ही ठहरना पड़ता है। इसी तरह इन गांवों की तहसील करीब 100 किमी दूर धनोल्टी है। 

जहां काम कराने में दूरी और समय अधिक लगता है। ग्रामीणों का आने-जाने व वहां होटलों में ठहरने में बहुत खर्चा आता है। गौर करने वाली बात यह है कि यहां के लोग देहरादून जिले की सीमा पर बसे होने के कारण कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। यहां तो वोट मांगने भी केवल कभी कभार पार्टी के कार्यकर्ता ही पहुंचते हैं। ये गांव दुनिया से कटे हुए लगते हैं। 

ग्रामीणों का कहना है कि हमें इस तरह क्यों उलझा कर रखा है। विकासखंड चंबा तो तहसील धनोल्टी हैं और न्याय पंचायत पलास नागणी है। खास बात यह है कि इन गांवों से प्रदेश की राजधानी देहरादून मात्र बीस किमी दूर है। ग्रामीणों का कहना है कि उनका मुख्य बाजार देहरादून है और सर्वाधिक आना-जाना देहरादून ही होता है इसलिए उन्हें देहरादून के रायपुर ब्लॉक में शामिल किया जाए। उनकी तहसील सौ किमी दूर धनोल्टी है, लेकिन ओबीसी में वे शामिल नहीं किए गए हैं। 

ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें किसी भी प्रकार की सुविधा प्रदान नही की गई है। उन्हें एक ही जगह शामिल किया जाए। ग्राम प्रधान घुड़साल गांव जय ङ्क्षसह कंडारी का कहना है कि लोगों को अपने काम कराने के लिए दूर और अलग-अलग दिशाओं में जाना पड़ता है जिस कारण बहुत परेशानी होती है। परिवार रजिस्टर व जन्मप्रमाण बनाने के लिए भी सैंकड़ों मील दूर जाना पड़ता है। काम छोटा और समय व खर्चा अधिक होता है।

दुर्गम गांवों की स्थिति

  • गांव-पसनी, बमेंडी, घुड़सालगांव, बनाली। 
  • आबादी करीब ढाई हजार।
  • न्याय पंचायत पलास-नागणी-गांव से दूरी 120 किमी।
  • ब्लॉक मुख्यालय चंबा-गांव से दूरी 130 किमी
  • जिला मुख्यालय नई टिहरी-गांव से दूरी 140 किमी
  • तहसील धनोल्टी-गांव से दूरी 100 किमी।

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