शीतकाल में यात्रा शुरू करना चुनौती से कम नहीं
संवाद सहयोगी, रुदप्रयाग: शीतकाल में भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यात्रा शुरु करने का फैसल
संवाद सहयोगी, रुदप्रयाग: शीतकाल में भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यात्रा शुरु करने का फैसला भले ही सरकार ने कर लिया हो, लेकिन धरातल पर इसके लिए कार्ययोजना तैयार करने की आवश्यकता है। यात्रियों में पिछले साल की आपदा का खौफ जब ग्रीष्मकाल में ही नही गया तो शीतकाल में यात्री कैसे तुंगनाथ पहुंचेंगे।
तृतीय केदार तुंगनाथ की यात्रा अन्य सभी धामों में सबसे सुगम व सरल है। बावजूद इसके शीतकाल में यहां पहुंचना काफी कठिन हो जाता है। चोपता से तुंगनाथ की दूरी मात्र तीन किमी है, और यहीं से यात्री पैदल जाते हैं, जबकि चोपता तक यातायात सुविधा है, लेकिन शीतकाल में चोपता तक भारी बर्फबारी के चलते यात्री या पर्यटन नहीं पहुंच पाते हैं। लगभग तीन महीने तक यह क्षेत्र पूरी तरह मानवीय गतिविधियों से बंद रहता है। ऐसे में इस क्षेत्र में आवाजाही करवाना आसान नहीं है। मोटर मार्ग पर बर्फ हटाने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है। लोनिवि के डोजर बर्फ हटाने में कई महीने लगा देते हैं। चोपता से तुंगनाथ तक का पैदल मार्ग भी काफी चौड़ा है, लेकिन पूरे शीतकाल में यह बर्फ से पूरी तरह ढक जाता है। फिलहाल आगामी 31 अक्टूबर को यहां के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो रहे हैं।
द्वितीय केदार तुंगनाथ
रुद्रप्रयाग से सड़क मार्ग चोपता की दूरी- 76
सड़क मार्ग से दूरी- तीन किमी
वर्ष 2014 में यात्रियों की संख्या-2533
द्वितीय केदार तुंगनाथ की गद्दीस्थल मक्कूमठ हैं, यहां शीतकाल में भी आसानी से भोले बाबा के दर्शन भक्त कर सकते हैं। तुंगनाथ के लिए शीतकाल में बर्फ से पूरी तरह ढ़का रहता है, ऐसे में वहां जाना भक्तों का आसान नहीं है।
अनिल शर्मा
कार्याधिकारी, बदरी-केदार मंदिर समिति।