प्रकृति के रूपों से रूबरू होने का मिलेगा अवसर
संवाद सहयोगी, रुद्रप्रयाग: नंदा देवी राजजात धार्मिक यात्रा ही नहीं बल्कि प्रकृति व ग्रामीण अंचलों की परंपरा को समझने की भी यात्रा है। यात्रा के हर पड़ाव का ऐतिहासिक व पारंपरिक महत्व है। यात्रा में जहां प्रकृति के रौद्र रूप से यात्री रूबरू होंगे। वहीं, वेदनी बुग्याल की सुंदरता देखने का अवसर भी मिलेगा। राजजात में चलने वाले भक्तों व पर्यटकों को हिमालयी क्षेत्र की वनस्पति, पशु-पक्षियों व वहां की पारस्थितिकी समझने का अनोखा अवसर प्राप्त होगा।
नौटी से शुरू होने वाली नंदादेवी राजजात में बीस पड़ाव हैं। इसमें बाण तक ग्रामीण अंचल है। नौटी से लेकर बाण तक भक्त गांवों की परंपरा से भी अवगत हो सकेंगे। असली यात्रा होती है बाण गांव के बाद। इस गांव के बाद यात्रा घने जंगलों के बीच से बढ़ती है। रोमांच से भरी यह यात्रा प्राकृतिक सौंदर्य से भी भक्तों को रूबरू करवाती है। राजजात के पड़ावों में वेदनी बुग्याल, वेदनी कुंड, राज्यपुष्प ब्रह्मकल व राज्य पक्षी मोनाल समेत अनेक जड़ी बूटियां है। यात्री व पर्यटक इसका भरपूर लुप्त उठा सकेंगे, जबकि रूपकुंड पहुंचने पर यात्रा का अनोखा रूप देखने को मिलेगा। कुंड में मानव अस्थियां आज भी विद्यमान हैं जो लोगों के लिए रहस्य है। आगे ज्यूरागली है जहां प्रकृति का रौद्र रूप साफ देखा जा सकता है। यहां ढलानदार चढ़ाई को एक छोटी सी पगडंडी के सहारे पार करनी पड़ती है, जबकि आगे यात्रा मार्ग पर कुछ ग्लेशियरों को भी पार करना पड़ेगा। यहां यात्रा किसी रोमांच व साहसिक कार्य से कम नहीं है। इसके बाद है होमकुंड। यह अलकनंदा की सहायक नंदाकिनी का उद्गम स्थल है। चौसिंग्या खाडू को यहीं से कैलाश की ओर रवाना किया जाता है। यहां पर भक्ति व प्रकृति का अनोखा रूप देखने को मिलता है। इसके बाद यात्री पैदल पगडंडियों से वापस आते हैं।