पहाड़ में पानी और जवानी को रोकने में जुटे पिथौरागढ़ के राजेंद्र
गंगोलीहाट के राजेंद्र सिंह बिष्ट इन चुनिंदा लोगों में से एक हैं जो पहाड़ में पानी और जवानी को रोकने के प्रयास में जुटे हैं। इसके लिए उन्होंने 210 चाल-खालों को पुनर्जीवित किया।
पिथौरागढ़, [ओपी अवस्थी]: पहाड़ की जवानी और पानी को पहाड़ में ही रोकने के बड़े-बड़े दावे होते हैं, परंतु इस दिशा में काम करने वाले चुनिंदा लोग ही हैं। हिमालयन ग्राम विकास समिति गंगोलीहाट के राजेंद्र सिंह बिष्ट इन चुनिंदा लोगों में से एक हैं। उनके प्रयासों से न केवल 210 चाल-खालों (तालाब) को पुनर्जीवन मिला, बल्कि 111 गांवों में वर्षा जल का संग्रहण भी हो रहा है। कई परिवार वर्षा जल से अपनी प्यास बुझा रहे हैं और खेती को जिंदा रखे हुए हैं।
पहाड़ों में वर्षा का जल ढलानों पर बह जाता है। इसलिए भरपूर वर्षा होने के बाद भी यहां पानी का संकट बना रहता है। लोगों के हलक ही नहीं, खेत भी प्यासे रह जाते हैं और वर्षा जल का कोई भी उपयोग नहीं हो पाता।
ऐसे में जल संग्रहण के लिए मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह की पहल से प्रभावित हिमालय ग्राम विकास समिति दशाईथल के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह बिष्ट ने भी पेयजल संकटग्रस्त क्षेत्रों में इस मुहिम को आगे बढ़ाया।
इसके लिए सबसे पहले उन्होंने तहसील बेरीनाग के जबरदस्त जल संकट झेलने वाले राईगड़स्यारी गांव को चुना। यहां ग्रामीणों को वर्षा जल संग्रहण के लिए प्रेरित कर उनके सहयोग से गांव में 42 वर्षा जल टैंकों का निर्माण किया गया।
यह प्रयोग सफल रहा तो उन्होंने गंगोलीहाट के जल संकट से जूझ रहे नाग गांव के लिए समुद्रतल से 6600 फीट की ऊंचाई पर चार लाख लीटर क्षमता का वर्षा जल टैंक बनाया। इस टैंक से 20 परिवार वर्ष 2008 से लाभान्वित हो रहे हैं।
बीते नौ साल में कोई भी दिन ऐसा नहीं, जब इस टैंक से पानी नहीं मिला हो। ग्रामीण इस जल के उपयोग की एक नीति बना चुके हैं और लंबे समय तक बारिश न होने पर अपने जल उपयोग में कटौती कर लेते हैं।
इसके अलावा बिष्ट के प्रयास से भामा व जीवल में भी एक-एक लाख लीटर क्षमता के दस, मुनस्यारी के कोट्यूड़ा में 24, चौकोड़ी में दस और भुवनेश्वर में छह जल संग्रहण टैंक बनाये गए हैं। इन टैंकों का प्रबंधन अब ग्रामीण स्वयं कर रहे हैं। इतना ही नहीं, बिष्ट के प्रयास से मुनस्यारी तहसील में सूख चुके व निष्प्रयोज्य हो चुके 210 चाल-खालों को भी पुनर्जीवन मिला है।
ग्रामीणों के श्रमदान से बने इन चाल-खालों में 67 लाख लीटर वर्षा जल संग्रहीत होता है। वहीं कृषि कार्य के लिए बने 90 टैंकों में संग्रहीत पानी का उपयोग सिंचाई कार्य के लिए होता है।
बिष्ट का मानना है कि पहाड़ों में जल संकट से निजात पाने के लिए वर्षा जल संग्रहण और चाल-खाल सबसे उचित एवं सस्ता माध्यम हैं। इसके लिए चौड़ी पत्ती वाले वनों की आवश्यकता है। ऐसे वनों के कारण भूमि में नमी रहती है। मिट्टी भुरभुरी बनी रहती है, जिसमें उसकी पानी को धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है। इसलिए पहाड़ों में चौड़ी पत्ती वाले वनों को बचाना होगा और नये वन तैयार करने होंगे।
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