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तंत्र के गण-पलायन के दर्द ने हाथों में थमा दी कलम

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : जो जड़ों से कट जाता है, उसको आने वाला कल और समाज भी भुला देता है और ज

By Edited By: Published: Mon, 23 Jan 2017 03:49 PM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2017 03:49 PM (IST)
तंत्र के गण-पलायन के दर्द ने हाथों में थमा दी कलम
तंत्र के गण-पलायन के दर्द ने हाथों में थमा दी कलम

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : जो जड़ों से कट जाता है, उसको आने वाला कल और समाज भी भुला देता है और जो जड़ों को नहीं छोड़ता उसे सदियों तक लोग याद रखते हैं। कलम के धनी मुनस्यारी के डॉ. शेर सिंह पांगती ने देश की चीन सीमा से लगे क्षेत्र से पलायन करने वाले लोगों को यह संदेश ही नहीं दिया, बल्कि उन्हें उनकी संस्कृति से भी परिचित कराया। लोगों को उनकी बात समझ में आ गई और धीरे-धीरे पलायन पर विराम लगने लगा।

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वर्ष 1962 में भारत-तिब्बत व्यापार चीन युद्ध से बंद हो गया। इससे चीन सीमा से लगे क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ गई। रोजगार के अभाव में सीमा से लगे गांवों के लोग पलायन करने लगे। यह देखकर शिक्षक डॉ. शेर सिंह पांगती का मन विचलित होने लगा। सीमा के इस तरह खाली होने से मन ही मन में डॉ. पांगती ने ठान लिया कि वह पलायन को अपने तरीके से रोकेंगे।

सीमा खाली नहीं हों इसके लिए लोगों को अपनी संस्कृति, पूर्वजों के त्याग, बलिदान को याद दिलाने के लिए डॉ. पांगती ने हाथों में कलम थाम ली। सीमा में रहने वालों के जीवन से नई पीढ़ी को अवगत कराने तथा अपने महत्व को समझने के लिए पुराने बर्तनों से लेकर पारंपरिक वस्तुओं को एकत्रित कर संग्रहालय बनाया। साथ ही सीमा पर रहने वाले बडे़, बुर्जुगों से मिलकर क्षेत्र की किंवदंतियों, किस्सों को कहानी के रू प में प्रकाशित कर पुस्तक के रू प में लोगों तक पहुंचाया। अपने खान, पान, वेशभूषा, बोली भाषा से अवगत कराने के लिए सीमांत के पुराने जीवन को उकेर कर नई पीढ़ी तक पहुंचाया। इसके अलावा नई पीढ़ी को उनके पूर्वजों की जीवन शैली से अवगत कराने के लिए गांव-गांव घूम कर पुराने बर्तनों सहित मकानों की खोली, द्योली एकत्रित कर मुनस्यारी में संग्रहालय का निर्माण किया। यह संग्रहालय आज पर्यटन विकास में तो मददगार साबित हो रहा है। वहीं क्षेत्र से पलायन कर चुके परिवारों के लोग इससे प्रेरित होकर अपने गांवों को भी लौटने लगे हैं।

81 वर्षीय डॉ. शेर सिंह पांगती अपनी संस्कृति, सभ्यता को समझने के लिए अब तक 18 पुस्तकें लिख चुके हैं। अभी भी उनका लेखन थमा नहीं है। वहीं मुनस्यारी के बाद अब दूर के गांवों में भी संग्रहालय स्थापित कर सीमा के मूल वाशिंदों को अपने मूल स्थान की तरफ आकर्षित करने का प्रयास चल रहा है। श्री पांगती कहते हैं कि ग्लोबलाइजेशन के चलते पलायन तेजी से हो रहा है। लोग अपने पुराने मकानों की खोली और द्योली तक बेचने को आमदा हैं। ऐसे में सीमा क्षेत्र से पलायन किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। वह कहते हैं कि अपनी लेखनी और प्रयास से वह पलायन रोकने का लगातार प्रयास करते रहेंगे।


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