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335 दिनों में नौ बार डोली सीमांत की धरती

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : हिमालयी क्षेत्र में भूकंप आना आश्चर्यजनक नहीं है। वैज्ञानिकों के अनुसार

By Edited By: Published: Sat, 03 Dec 2016 01:01 AM (IST)Updated: Sat, 03 Dec 2016 01:01 AM (IST)
335 दिनों में नौ बार डोली सीमांत की धरती

जागरण संवाददाता, पिथौरागढ़ : हिमालयी क्षेत्र में भूकंप आना आश्चर्यजनक नहीं है। वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय अभी बनने की कगार पर है। इसके चलते यहां पर भूगर्भीय हलचलें जारी है। इस कारण भूकंप अधिक आते हैं। सीमांत जिले में तो भूकंप अधिक आने लगे हैं। 335 दिनों में नौ बार सीमांत की धरती डोली है।

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इस वर्ष आए नौ भूकंप में तीन का केंद्र भारत-नेपाल सीमा पर रहा। तीनों भूकंप तीन मेग्नीट्यूड से अधिक के थे। दो बार के भूकंप का केंद्र उच्च हिमालयी भू भाग था। पांच मई को आए 4.1 मेग्नीट्यूड भूकंप का केंद्र उत्तर पश्चिमी हिमालय के नंदा देवी क्षेत्र में पांछू तथा 16 अगस्त के भूकंप का केंद्र भी बर्फीला क्षेत्र ही रहा। एक मार्च और 8 जून को आए भूकंप का केंद्र मध्य हिमालयी भू भाग रहा।

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वर्ष 2016 के पहले दिन आया था भूकंप

पिथौरागढ़ : वर्ष 2016 के पहले दिन भी भूकंप आया था। एक जनवरी 2016 को भारत-नेपाल सीमा पर भूकंप आया था। जिसकी तीव्रता 3 मेग्नीट्यूड थी। भूकंप का केंद्र भी भारत नेपाल सीमा थी।

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वर्ष 2016 में आए भूकंप

तिथि केंद्र तीव्रता (मेग्नीट्यूड)

1 जनवरी भारत-नेपाल सीमा 3

1 मार्च नाचनी 2.8

11 अप्रैल थर्प, बेरीनाग 3.6

5 मई उच्च हिमालयी पांछू 4.1

8 जून तल्ला भैंस्कोट 3.5

16 अगस्त उच्च हिमालय 2.7

14 अक्टूबर चामी 3.3

17 अक्टूबर भारत नेपाल सीमा 4.2

1 दिसंबर भारत नेपाल सीमा 5.2

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इंडियन प्लेट यूरेशिया से टकरा रही है जिसके चलते हिमालयी भू भाग में भूकंप आ रहे हैं। आपसी टकराव से पृथ्वी के भीतर बना दबाव जब रिलीज होता है तब भूकंप आते हैं। हिमालय में स्थित पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग जिले जोन फाइव में आते हैं। उत्तराखंड के अन्य जिले जोन थ्री में हैं। मुनस्यारी, धारचूला, अस्कोट, मदकोट, कपकोट भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं। इस क्षेत्र में आ रहे अधिकांश भूकंपों की गहराई 15 से 20 किमी है। भूकंप की गहराई कम होने से नुकसान अधिक होने की संभावना रहती है। इन क्षेत्रों में लगभग रोज भूकंप आते हैं जिनकी तीव्रता कम होने से मानव और जानवरों को भी पता नहीं चल पाता है। भूकंप से होने वाले नुकसान को कम करने के बारे में सोचना होगा। इसके मद्देनजर विकास कार्य भी होने चाहिए।

प्रो. सीसी पंत, प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल


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