सिर के पीछे मुखौटा लगाकर नरभक्षी को कर सकते हैं भ्रमित
प्रख्यात शिकारी लखपत सिंह के मुताबिक नरभक्षी के हमलों से बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमें जंगलों को बचाना होगा। उन्होंने नरभक्षी के हमले से बचने के टिप्स भी दिए।
श्रीनगर गढ़वाल, [जेएनएन]: प्रख्यात शिकारी और शिक्षक लखपत सिंह का कहना है कि उत्तराखंड में नरभक्षी के हमलों से बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमें जंगलों को बचाना होगा। तभी मानव व वन्य जीव दोनों सुरक्षित रह सकेंगे। उन्होंने कहा कि नरभक्षी पीछे से हमला करता है। ऐसे में नरभक्षी प्रभावित क्षेत्र के लोग सिर के पीछे मुखौटा लगाकर उसे भ्रमित कर सकते हैं।
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन और स्वैच्छिक शिक्षक मंच के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि बाघ और गुलदार को आदमखोर बनने से रोकने के लिए जंगलों को संरक्षित और उन्हें पोषित करना जरूरी है। इससे वन्य जीवों के लिए भोजन श्रृंखला जंगल में ही बनी रहेगी। तेंदुआ और बाघ रहे और हम भी रहें। इसी सिद्धांत पर चलना होगा।
अब तक 47 नरभक्षी गुलदार (तेंदुआ) और दो आदमखोर बाघों को मौत के घाट उतारने वाले शिकारी रावत ने कहा कि गुलदार का हमला अमूमन शाम छह बजे से रात्रि आठ बजे के बीच होता है। इस दौरान बच्चों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि गुलदार आगे से हमला नहीं करता है। इसलिए प्रभावित क्षेत्र में पीछे से विभिन्न मुखौटों का इस्तेमाल कर गुलदार को भ्रमित किया जा सकता है। लैंटाना वाले क्षेत्र में गुलदार का हमला ज्यादा होता है। क्योंकि उस क्षेत्र में उसके छिपने के लिए काफी स्थान होता है।
उन्होंने कहा कि बाघ अथवा गुलदार का बूढ़ा हो जाना, उसके दांतों का टूटना और घिसना, शारीरिक अक्षमता, मादा गुलदार का अपने बच्चों के लिए दूध और भोजन की तलाश और सिमटते जंगल इनके नरभक्षी बनने के मुख्य कारण हैं।
उन्होंने कहा कि कुत्तों के लालच में आने वाला गुलदार कुत्ते नहीं मिलने पर बच्चे को अपना शिकार बना लेते हैं। इस अवसर पर नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष कृष्णानंद मैठाणी, डॉ. अरुण कुकशाल, नीरज नैथानी, जेके पैन्यूली, गोकर्ण बमराड़ा, गंगा असनोड़ा, जगमोहन कठैत भी कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित थे। महेश गिरी, अशोक कांडपाल ने कार्यक्रम का संयुक्त रूप से संचालन किया।
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