बेगाने हुए गढ़वाली
संवाद सहयोगी, कोटद्वार: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली आज
संवाद सहयोगी, कोटद्वार:
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली आज अपनों के बीच बेगाने हो गए। शायद यही वजह है कि गढ़वाली जी की पुण्य तिथि पर न तो राज्य सरकार ने उन्हें याद किया और न अपनों ने ही उनका स्मरण किया।
पेशावर कांड के नायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने एक अक्टूबर 1979 को अंतिम सांस ली थी। गढ़वाली को देश भर में पुण्य तिथि पर याद किया जाता रहा है, लेकिन आज अपने ही घर में उन्हें याद करने वाला कोई नहीं। तहसील परिसर में स्थापित गढ़वाली जी की प्रतिमा स्थल पर हर वर्ष उनकी पुण्य तिथि पर मुख्य श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाता रहा। लेकिन बीते दो साल से उनकी मूर्ति पर किसी ने एक फूल तक चढ़ाने की जहमत नहीं उठाई। सरकार ने उनके नाम पर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना बनाकर भूल गई। यही हाल बड़बोले बोल बोलने वाले नेता और समाजसेवियों को भी गढ़वाली की पुण्य तिथि की याद नहीं रही।
उधर, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली स्मारक समिति के तत्वावधान में गढ़वाली जी के नाती शैलेंद्र सिंह बिष्ट और उनके परिजनों ने धु्रवपुर स्थित गढ़वाली जी के स्मारक में उनका भावपूर्ण स्मरण किया, लेकिन वह उनकी उपेक्षा से खासे नाराज हैं। उन्होंने गढ़वाली जी की उपेक्षा को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में गोली और बम चले बिना ही अंग्रेजों के हौसले पस्त हो गए थे। असहयोग आंदोलन का दमन करने के लिए अंग्रेजों ने गढ़वाल बटालियन को आदेश दिए। लेकिन, बटालियन के नायक हवलदार वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पूर्व में फायर न करने की योजना के अनुसार कोई भी सैनिक आदेश मानने को तैयार नहीं हुआ। इससे अंग्रेज अफसरों में हड़कंप मच गया। वह समझ गए कि गढ़वाल बटालियन अब आदेश मानने से इनकार करने लगी है। इसी घटना से देश भर में ब्रिटिश शासन की खिलाफत शुरू हुई। आजाद हिन्द फौज का बीजारोपण भी यहीं से हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि 1942 में सिंगापुर में 300 सौ से अधिक गढ़वाली सिपाही चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज में भर्ती हुए।
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