जो सरकारी आई उसी ने छला
संवाद सहयोगी, पौड़ी: पर्वतीय क्षेत्रों से लगातार हो रहे पलायन का दुखड़ा तो हर राजनीतिक दल का नेता रोता
संवाद सहयोगी, पौड़ी: पर्वतीय क्षेत्रों से लगातार हो रहे पलायन का दुखड़ा तो हर राजनीतिक दल का नेता रोता रहता है, लेकिन पलायन के पीछे क्या कारण हैं। इसके कारणों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। दें भी क्यों नेता भी पहाड़ी जनता से वोट झपट कर खुद मैदान में बस गए हैं। इसलिए उनका सरोकार केवल वोट तक ही सीमित है।
चकबंदी आंदोलन के प्रणेता गणेश ¨सह गरीब ने चकबंदी, आंदोलन, सरकार की भूमिका, चकबंदी विधेयक व पहाड़ के सुनियोजित विकास पर कहा कि उत्तराखंड अलग राज्य की संकल्पना को सरकारों ने धूमिल कर दिया है। उत्तराखंड का जनांदोलन पहाड़ के विकास पर केंद्रित था। लेकिन राज्य गठन के 16 वर्ष बाद उत्तराखंडियों को पहाड़ के सुनियोजित विकास के मूल तो दूर आवरण की अवधारणा तक ढांचा तैयार नजर नहीं आ रहा है। गरीब ने कहा कि पहाड़ में बढ़ते पलायन के लिए सरकारों की नीतियां जिम्मेदार रही हैं। सरकारें ने हमेशा ही नीतियों में गांव की उपेक्षा की है। सरकारों का ध्यान सिर्फ गांव तक बिजली, पानी व सड़क पहुंचाने तक सीमित रहा। गांव के ढांचागत विकास का खाका तैयार करने में सरकारें आजतक विफल रही। उन्होंने कहा कि पहाड़ के विकास के मूल में गांव निहित है। गांव में खेती, बागवानी, फलोद्यान, फूलोद्यान, पशुपालन, मौनपालन, भेड़-बकरीपालन, संग्रहण, संरक्षण व विपणन की सुविधाएं जुटाई जानी चाहिए। युवाओं को उन्नत शिक्षा, रोजगार के साथ ही स्वरोजगार से जोड़े जाने की गरीब ने पैरवी की। उन्होंने जंगली जानवरों के बढ़ते प्रभाव पर गांवों का जनविहीन होना मुख्य कारण करार दिया। गरीब ने कहा कि चकबंदी पहाड़ की खेती को संजीवनी देने का काम करेगी। लंबे संघर्ष के बाद सरकार ने चकबंदी विधेयक तैयार किया है, लेकिन सरकार चकबंदी विधेयक के क्रियान्वयन को लेकर उदासीन बनी हुई है। गणेश ¨सह गरीब ने कृषि शिक्षा को प्राथमिक स्तर से ही मुख्य विषय के रुप में पाठ्क्रम में शामिल किए जाने की पैरवी की। उन्होंने कहा कि शिक्षा में कृषि विषय को माध्यमिक स्तर से शामिल किया जा रहा है।
पहाड़ के नीति निर्धारण में सहभागी बने मीडिया:
गणेश ¨सह गरीब ने मीडिया से पहाड़ के नीति निर्धारण में सहभागी बनने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में सरकारों के उपेक्षापूर्ण कार्यशैली व भ्रष्टतंत्र के हावी होने से आमजन को मीडिया से बड़ी उम्मीदें है। मीडिया को पहाड़ के विकास का ढांचा तैयार करने में सहभागी बनना होगा।