सीमांत क्षेत्रों में जटामासी उत्पादन को मिलेगा बढ़ावा
जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: जड़ी बूटियों के संरक्षण और कृषिकरण को बढ़ावा देने में जुटा गढ़वाल के
जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: जड़ी बूटियों के संरक्षण और कृषिकरण को बढ़ावा देने में जुटा गढ़वाल केंद्रीय विवि उच्च शिखरीय पादप शोध केंद्र (हैप्रिक संस्थान) अब सीमांत क्षेत्रों में भी जड़ी बूटी उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना पर कार्य कर रहा है। इसके लिए हैप्रिक संस्थान के वैज्ञानिकों ने योजना के प्रथम चरण में चमोली जिले के सीमांत क्षेत्र नीति, बम्पा, मलारी और फरकिया क्षेत्र को चुना है। इन क्षेत्रों में जटामासी के संरक्षण और कृषिकरण को बढ़ावा देने के लिए हैप्रिक संस्थान के वैज्ञानिकों के एक दल ने किसानों को प्रशिक्षण दिया। साथ ही जटामासी की ढाई हजार पौध भी निशुल्क वितरित की।
हैप्रिक संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विजयकांत पुरोहित ने नीति और बम्पा क्षेत्र में जटामासी के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी प्रशिक्षण दिया। उन्होंने कहा कि जटामासी को बढ़ावा मिलने से सीमांत क्षेत्र के किसानों को जहां आर्थिक लाभ मिलेगा वहीं इससे प्राप्त होने वाले औषधीय तेल से कुटीर उद्योग भी स्थापित हो सकत हैं। डा. विजयकांत पुरोहित ने कहा कि जटामासी सहित अन्य जड़ी बूटियों के कृषिकरण को बढ़ावा मिलने से सीमांत क्षेत्र से पलायन में भी कमी आएगी। हैप्रिक संस्थान के निदेशक प्रो. पी प्रसाद ने कहा कि जटामासी के संरक्षण और कृषिकरण को लेकर जोशीमठ और देवाल ब्लॉक क्षेत्र के उच्च स्थानों वाले गांवों को चयनित किया गया है। प्रो. प्रसाद ने कहा कि संस्थान के इस प्रथम चरण के सफल रहने पर अन्य पहाड़ी जिलों में यह योजना शुरू की जाएगी। ग्रामीण शेर ¨सह राणा, सरस्वती देवी, जीत ¨सह भंडारी, मुन्नी देवी, बचन ¨सह राणा ने हैप्रिक संस्थान की इस योजना को लाभप्रद बताया।