.तो कोटद्वार को मिल सकती है सौगात
जागरण संवाददाता, कोटद्वार : प्रदेश में 2017 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह वर्ष प्रद
जागरण संवाददाता, कोटद्वार :
प्रदेश में 2017 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह वर्ष प्रदेश में सत्तासीन कांग्रेस सरकार के लिए काफी अहम है। माना जा रहा है अगले कुछ महीनों में प्रदेश के मुखिया ऐसी घोषणाएं कर सकते हैं, जो मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में खड़े होने को मजबूर कर दें। इन्हीं घोषणाओं में शामिल है कोटद्वार जिले की घोषणा, जिसकी सौगात संभवत: बसंत पंचमी के मौके पर कोटद्वार क्षेत्र को मिल सकती है।
राजनैतिक गलियारों से छन कर आ रही चर्चाओं पर भरोसा करें तो बसंत पंचमी के मौके पर सरकार कोटद्वार को जिले की सौगात दे सकती है। दरअसल, प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत का 12 फरवरी को कण्वाश्रम में कार्यक्रम प्रस्तावित है। वे कण्वाश्रम में आयोजित तीन दिवसीय भरत महोत्सव में शिरकत करेंगे। माना जा रहा है कि चुनाव आचार संहिता लगने से पूर्व पूर्व सीएम का यह अंतिम कोटद्वार दौरा है, ऐसे में सीएम कोटद्वार जिले की घोषणा कर दें, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
सनद रहे कि 15 अगस्त 2011 को प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने कोटद्वार को जिला बनाने की घोषणा तो की, लेकिन इस संबंध में न तो अधिसूचना जारी हुई और न ही अधिकारियों की तैनाती की गई। सत्ता परिवर्तन हुआ तो पूरा मामला ठंडे बस्ते में पहुंच गया। लेकिन, अब एक बार फिर कोटद्वार जिला निर्माण को लेकर शासन स्तर में हुई हलचल के बाद क्षेत्र में जिला निर्माण की चर्चाएं काफी गरम हैं। राजनैतिक गलियारों तक पकड़ रखने वाले कई दिग्गज इस बात की पुष्टि भी कर रहे हैं।
जिला निर्माण : एक नजर
कोटद्वार जिला निर्माण की मांग कोई पुरानी नहीं है। जिला निर्माण की मांग सर्वप्रथम पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र ¨सह गढ़वाली की ओर से उठी। हालांकि, गढ़वाली कोटद्वार से लगे घाड़ क्षेत्र में स्थित भरत नगर को जिला बनाने की मांग कर रहे थे। मकसद साफ था, जिला बनने के बाद न सिर्फ भरतनगर का विकास होता, बल्कि पूरे कोटद्वार क्षेत्र में विकास की नई किरण जगती। गढ़वाली के निधन के बाद जनता की मांग ठंडे बस्ते में पहुंच गई। जनता जिला निर्माण को भूल ही चुकी थी, लेकिन अस्सी के दशक में अधिवक्ताओं व छात्रों ने कोटद्वार जिला निर्माण की मांग उठानी शुरू कर दी। यह मांग 1997-98 में उस वक्त प्रबल हो गई, जब अधिवक्ताओं के साथ ही विभिन्न संगठनों से जुड़े लोगों ने यह तहसील परिसर में अनशन शुरू कर दिया। 68 दिन तक चले इस अनशन कार्यक्रम का असर यह रहा कि उत्तर प्रदेश शासन ने इस अनशन की सुध लेते हुए तत्कालीन उपजिलाधिकारी कै.सुशील कुमार को कोटद्वार जिले का ब्लू ¨प्रट तैयार करने के निर्देश दे दिए। ब्लू ¨प्रट शासन को भेज दिया गया, लेकिन जिले की घोषणा से पूर्व ही उत्तराखंड राज्य का गठन हो गया। राज्य गठन के बाद भी जिला निर्माण को अधिवक्ताओं सहित विभिन्न संगठनों ने आंदोलन कई मर्तबा चला। जिला निर्माण को लेकर कोटद्वार बार एसोसिएशन पिछले लंबे समय से प्रत्येक शनिवार धरना देता आ रहा है।
वीरोंखाल में भी आंदोलन जारी
बसंत पंचमी के मौके पर जहां कोटद्वार क्षेत्र को जिला बनाए जाने की चर्चाएं जोरों पर हैं, वहीं वीरोंखाल क्षेत्र की जनता भी पिछले छह माह से कर्मवीर जयानंद भारती के नाम से वीरोंखाल निर्माण की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। वीरोंखाल जिला निर्माण संघर्ष समिति के तत्वावधान में चल रहे आंदोलन के तहत ग्रामीण वीरोंखाल, नैनीडांडा, पोखड़ा, थलीसैण को मिलाकर अलग जनपद बनाने की मांग कर रहे हैं।