खोह झील को वन विभाग की ना
संवाद सहयोगी, कोटद्वार : खोह नदी में बहुउद्देशीय झील निर्माण की सिंचाई विभाग की योजना को हाथियों ने निर्माण से पहले ही ध्वस्त कर दिया। दरअसल, झील निर्माण स्थल आरक्षित वन क्षेत्र में होने के साथ ही हाथी कॉरीडोर के मध्य में पड़ रहा है। ऐसे में वन महकमे ने झील निर्माण को लाल झंडी दिखा दी है।
बताते चलें कि करीब तीन वर्ष पूर्व सिंचाई विभाग लालपुल के समीप खोह नदी पर करीब ढाई किलोमीटर क्षेत्र में बहुउद्देशीय झील निर्माण की योजना बनाई थी। इस झील निर्माण से जहां क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलना था, वहीं नगर क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति के एक प्राकृतिक स्रोत से पैदा हो जाता। साथ ही झील में मत्स्य पालन भी किया जाना था। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाए कि योजना परवान चढ़ने से पहले ही धराशायी हो गई।
यहां फंसा पेंच
सिंचाई विभाग की ओर से जिस स्थल को झील निर्माण के लिए चुना गया था, वह स्थल लैंसडौन वन प्रभाग की दुगड्डा रेंज के अंतर्गत आरक्षित वन क्षेत्र में पड़ता है। इतना ही नहीं, इस पूरे क्षेत्र में हाथियों की आवाजाही काफी अधिक है। इसी क्षेत्र से हाथी कार्बेट नेशनल पार्क व राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में विचरण करते हैं। सिंचाई विभाग ने झील निर्माण की डीपीआर तैयार कर शासन में भेजी, लेकिन शासन ने इस रिपोर्ट पर वन विभाग से अनुमति की बाध्यता लगाते हुए पूरा प्रोजेक्ट वन महकमे में भेज दिया। विभागीय अधिकारियों की माने तो वन महकमे ने झील निर्माण को अनुमति देने से इंकार कर दिया है।
वन कानूनों में फंसी है मालन झील
इससे पूर्व, मालन नदी पर प्रस्तावित झील भी वन कानूनों की भेंट चढ़ चुकी है। दरअसल, कण्वाश्रम को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने के लिए भाजपा शासनकाल में मालन नदी में झील निर्माण की योजना बनाई गई थी। योजना धरातल पर आकार लेना शुरू करती, इससे पूर्व ही वन महकमे ने वन अधिनियमों का हवाला देते हुए झील निर्माण की अनुमति देने से इंकार कर दिया।
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'जिस स्थान पर झील निर्माण होना था, वह आरक्षित वन क्षेत्र में है। साथ ही वहां हाथियों की आवाजाही काफी अधिक है। जिस कारण वन विभाग ने निर्माण की अनुमति देने से इंकार कर दिया है।
रघुवीर सिंह गुसांई, सहायक अभियंता, सिंचाई विभाग'