नियम 'कैद', सड़कों पर गोवंश
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: गोवंश सड़कों पर है व गो-संरक्षण अधिनियम नगर पालिका की फाइलों में कैद। जी हां, कोटद्वार शहर की सड़कों पर घूम रहा आवारा गो-वंश भले ही पालिका को न नजर आ रहा हो, लेकिन आमजन के लिए यह बड़ी परेशानी का सबब बन रहा है। दरअसल, सड़कों पर घूम रहे आवारा पशु न सिर्फ दुर्घटनाओं का सबब बन रहे हैं, बल्कि यातायात भी बाधित कर रहे हैं।
गो-वंश संरक्षण अधिनियम लागू हुए सात वर्ष पूर्ण होने को हैं, लेकिन कोटद्वार क्षेत्र में आज तक अधिनियम धरातल पर नहीं उतर पाया है। नतीजा, सड़कों पर आवारा घूम रहे पशु व इसके कारण पैदा हो रही दिक्कतों से क्षेत्र की जनता जूझ रही है। गो-वंश संरक्षण के नाम पर विभिन्न संगठनों की ओर से आवाज तो उठती है, लेकिन धरातल पर कार्य करने की जहमत कभी महसूस नहीं की जाती। कुछ ऐसे भी हैं जो गो-वंश के नाम पर हथियाई जमीन से प्लाट काट उसे बेच रहे हैं।
गो-वंश संरक्षण अधिनियम: एक नजर
19 जुलाई 2007 को लागू हुए गो-वंश संरक्षण अधिनियम में स्पष्ट है कि कोई भी पशुपालक गो-वंश को आवारा नहीं छोड़ेगा। शहरी क्षेत्रों में गो-वंश पालने के लिए मुख्य नगर अधिकारी/अधिशासी अधिकारी से पंजीकरण प्रमाणपत्र लेना होगा। साथ ही प्रत्येक गो-वंश की व्यक्तिगत पहचान भी जरूरी है। नियमों का उल्लंघन करने पर पशुपालक को एक माह की सजा व एक हजार रुपये जुर्माना देना होगा।
पशुपालकों को नहीं जानकारी
इसे पालिका की लचर कार्यशैली ही कहा जाए कि शहरी क्षेत्र व इससे लगे ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालकों को गो-संरक्षण अधिनियम की जानकारी ही नहीं है। नतीजा, पशुपालक मवेशियों को गौशाला से निकालकर शहर की ओर हांक देते हैं। गत वर्ष पालिका ने हरिद्वार की एक संस्था के जरिए आवारा मवेशियों को हरिद्वार भेज दिया था। उस दौरान कुछ हफ्तों के लिए शहर की सड़कों से आवारा मवेशी गायब हो गए थे, लेकिन वर्तमान में स्थिति पहले जैसी ही हो गई है।
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आवारा पशु दोबारा सड़कों पर काफी अधिक हो गए हैं। जिन पशुपालकों के यह पशु हैं। उनके विरुद्ध गो-संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। विजय पीएस चौहान, अधिशासी अधिकारी, नगर पालिका कोटद्वार