जमीन में सूखे, कागजों में तर हैंडपंप
जागरण संवाददाता, कोटद्वार: पेयजल किल्लत झेल रही पर्वतीय क्षेत्र की जनता को तात्कालिक राहत प्रदान करने के उद्देश्य से आनन-फानन में लगाए गए तमाम हैंडपंप वर्तमान में शोपीस बनकर रह गए हैं। आलम यह है कि विभागीय दस्तावेजों में तो हैंडपंप चालू हालत में है, लेकिन जमीन हकीकत पूरी तरह उलट है।
वर्ष 2004-05 में पूरे प्रदेश में व्यापक स्तर पर हैंडपंप लगाने का कार्य किया गया। इसी क्रम में गढ़वाल संस्थान की कोटद्वार इकाई की ओर से यमकेश्वर, रिखणीखाल, नैनीडांडा, द्वारीखाल व दुगड्डा में हैंडपंप लगाए गए। वर्तमान में इन पांच प्रखंडों में 779 हैंडपंप लगे हैं। विभागीय आंकड़ों के मुताबिक इनमें से मात्र 114 हैंडपंप खराब हैं, जबकि हकीकत में करीब 90 फीसदी हैंडपंप खराब पड़े हैं। अकेले कोटद्वार-भाबर की बात करें तो क्षेत्र में विभाग के 166 हैंडपंप हैं। विभागीय आंकड़ों के मुताबिक इन 166 हैंडपंपों में से 10 हैंडपंप ही खराब हैं। लेकिन हकीकत में इक्का-दुक्का हैंडपंपों को छोड़ विभाग के तमाम हैंडपंप खराब हैं।
यह थे दावे
विभाग ने उन हैंडपंपों को भी चालू हालत में दर्शाया हुआ है, जिनका पानी पीने योग्य नहीं। हैंडपंप चल तो रहे हैं, उनमें लाल रंग युक्त पानी आ रहा है। विभाग ने लालरंग युक्त पानी को रोकने के लिए हैंडपंपों पर फिल्टर भी लगाए, लेकिन कोई फायदा नहीं। स्वयं विभाग भी मान रहा है कि कई नलकूप इस स्थिति में पहुंच चुके हैं, जो ठीक नहीं हो सकते हैं।
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'खराब हैंडपंपों की समय-समय पर मरम्मत होती रहती है। कई हैंडपंप ठीक करने लायक स्थिति में नहीं है। उन हैंडपंपों का विशेष ध्यान रखा जाता है, जहां पेयजल का एकमात्र जरिया हैंडपंप ही हैं।
एसएस मेवाड़, अधिशासी अभियंता, जल संस्थान कोटद्वार।