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यहां सीढी लगाकर उल्‍टी दिशा में बहने वाली नदी पार करते हैं ग्रामीण, हर समय बना रहता है जान का खतरा

ग्रामीण गांव की सरकार चुनने को तैयार हैं। विकास खंड मुनस्यारी के अंतर्गत आने वाले तहसील बंगापानी का सिरतोला खरतोली गांव सवा साल से वेदना झेल रहे हैं।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Mon, 14 Oct 2019 06:49 PM (IST)Updated: Tue, 15 Oct 2019 04:54 PM (IST)
यहां सीढी लगाकर उल्‍टी दिशा में बहने वाली नदी पार करते हैं ग्रामीण, हर समय बना रहता है जान का खतरा
यहां सीढी लगाकर उल्‍टी दिशा में बहने वाली नदी पार करते हैं ग्रामीण, हर समय बना रहता है जान का खतरा

मदकोट (पिथौरागढ़) जेएनएन : पहाड़ और यहां की प्रकृति जितना पर्यटकों को आकर्षित करती है, उसके उलट स्‍थानीय लोगों का जीवन संघर्ष उतना ही चुनौतीपूर्ण है। यहां स्‍कूल भी पहुंचने के लिए बच्‍चों को पहाड़ और नदियाें जैसी बाधा पार करनी होती हैं। पिथौरागढ़ में 284 परिवारों वाला एक ऐसा ही गांव है जहां ग्रामीणों को पुल न होने के कारण नदी जान जोखिम में डालकर सीढी से पार करनी होती है। मुनस्यारी ब्‍लॉक के तहसील बंगापानी का सिरतोला-खरतोली गांव यह वेदना सवा साल से झेल रहा है। फिर भी इनकी पीड़ा की सुध शासन-प्रशासन ने नहीं ली।

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एक जुलाई 2018 को इस क्षेत्र में बादल फटने से तबाही मची थी। छिपलाकोट के ग्लेशियरों से निकलने वाली छोटी नदी रुच्चि ने कहर बरपाया था। सिरतोला और खरतोली गांवों को जोडऩे वाले दो पुल बह गए। पुल बहने से सिरतोला, खरतोली और शिलिंग गांव कट गए। सिरतोला, खरतोली गांवों के स्कूल, बाजार सहित गांव से बाहर निकलने के लिए रुच्चि नदी पार करना आवश्यक है। सवा साल पूर्व बहे पुलों के स्थान नए पुल नहीं बने। नवंबर तक नदी का जलस्तर घट जाता है। बाद में विकल्प के तौर पर अस्थाई पुल बना कर दिन व्यतीत करते हैं।

इस समय रुच्चि नदी का जलस्तर बढ़ा हुआ है। गांव से कई किमी दूर उल्टी दिशा में नदी पर एक छोटा सा आरसीसी पुल है। यह गांवों तक जाने का मार्ग नहीं है। आरसीसी पुल के ऊपरी हिस्से में चट्टानों पर पूर्व बहे पुल की अवशेष दीवार है। ग्रामीण नदी पार कर चट्टानों से इस दीवार तक चढ़ते हैं और फिर दीवार से सीढ़ी के सहारे नीचे उतर कर रोखड़ से होते हुए गांवों को जाते हैं। पंचायती चुनाव के लिए प्रत्याशियों को भी इसी तरह गांवों तक पहुंचना पड़ा है।

सिरतोला में 120 परिवार और खरतोली, शिलिंग में 134 परिवार रहते हैं। आश्चर्य यह है कि 284 परिवार सवा साल से यह सब झेल रहे हैं। नदी पर पुल के प्रस्ताव जिला स्तर से लेकर शासन स्तर तक कहां पर ठहर गए हैं किसी को पता नहीं है। ग्रामीण गांव की सरकार चुनने जा रहे हैं। प्रत्याशी इसे मुद्दा बनाकर वोटों को लुभाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। क्षेत्र के समाज सेवी भवान सिंह कहते हैं कि इसी मार्ग से प्रसिद्ध छिपलाकेदार की धार्मिक  यात्रा में जाने वाले श्रद्धालु भी जाते हैं। इस वर्ष बौना, तौमिक, गोल्फा से जाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या काफी कम रही। उनका कहना था कि पंचायतों को सबसे पहले इन समस्याओं का समाधान करना चाहिए।


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