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बिना टीचर का कॉलेज देख एसडीएम हैरान

राजकीय बालिका इंटर कॉलेज धौलाखेड़ा, जहां पर 874 छात्राएं हैं। इन छात्राओं का भविष्य अंधकार में है। इन्हें पढ़ाने के लिए शिक्षक तक नहीं है। परेशान अभिभावकों ने जब प्रशासन से गुहार लगाई तो एसडीएम पंकज उपाध्याय मौके पर पहुंचे। जब उन्होंने स्थिति देखी तो हैरान रह गए।

By BhanuEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2015 02:56 PM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2015 02:58 PM (IST)
बिना टीचर का कॉलेज देख एसडीएम हैरान

हल्द्वानी। राजकीय बालिका इंटर कॉलेज धौलाखेड़ा, जहां पर 874 छात्राएं हैं। इन छात्राओं का भविष्य अंधकार में है। इन्हें पढ़ाने के लिए शिक्षक तक नहीं है। परेशान अभिभावकों ने जब प्रशासन से गुहार लगाई तो एसडीएम पंकज उपाध्याय मौके पर पहुंचे। जब उन्होंने स्थिति देखी तो हैरान रह गए। इस व्यवस्था को वे दुरुस्त तो नहीं कर सकते, लेकिन समस्या को डीएम तक पहुंचाने का आश्वासन दे गए।
दरअसल, दैनिक जागरण ने भी इस कॉलेज की हकीकत उजागर की थी। इसके बाद मंगलवार की सुबह एसडीएम पंकज उपाध्याय कॉलेज पहुंचे। जब उन्होंने हकीकत देखी तो आश्चर्य में पड़ गए। महत्वपूर्ण विषयों को पढ़ाने तक के शिक्षक नहीं थे। छात्राओं का भविष्य अंधकार में था। अभिभावकों भी अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चितिंत थे।
अभिभावक एसडीएम से कुछ व्यवस्था करने की बार-बार गुहार लगा रहे थे। इस पर एसडीएम ने पूरी रिपोर्ट तैयार की और डीएम को भेजने की बात कही। इस रिपोर्ट के आधार पर कॉलेज में 17 शिक्षक थे, जिसमें से 11 का ट्रांसफर कर दिया गया। इसके बाद यहां कोई प्रतिस्थानी नहीं भेजा गया।
हालात यह हैं कि इंटरमीडिएट की छात्राएं को गणित, अंग्रेजी, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं हैं। हाईस्कूल में भी गणित व अन्य कई विषयों के शिक्षक नहीं हैं। शिक्षक अभिभावक संघ के अध्यक्ष भावनाथ पंडित कहते हैं कि बिना गुरु के इन्हें कैसे ज्ञान मिलेगा। अगर जल्द ही शिक्षक नहीं आते हैं तो आंदोलन करने को बाध्य होना पड़ेगा।
जर्जर भवन से टपक रहा पानी
कॉलेज का भवन जर्जर हो चुका है। जगह-जगह दरारें पड़ी हैं। छत टपक रही है। बारिश के समय बच्चों का बैठना मुश्किल हो गया है। कॉपी-किताबें भीग जाती हैं।
बैठने के लिए कुर्सी-टेबल तक नहीं
यहां छात्राओं के बैठने तक की व्यवस्था नहीं है। 874 छात्राओं में से 574 छात्राएं दरी में बैठती हैं। इसके लिए अभिभावक जनप्रतिनिधियों को बार-बार अवगत कराते हैं। शिक्षा अधिकारियों से गुहार लगाते हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है।

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