महाविनाश को भूल गए
नैनीताल : सरोवरनगरी भूस्खलन व भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील है। भूकंप की दृष्टि से शहर जोन चार में आता है। शहर की तलहटी से मेन बाउंड्री थ्रस्ट तो झील के बीच से लेक थ्रस्ट गुजर रहा है। यहां 18 सितंबर 1880 से लगातार भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं। बावजूद शहर से छेड़छाड़ की जा रही है।
सन् 1841 में अंग्रेज व्यापारी पी बैरन की नैनीताल की खोज के बाद भवन निर्माण शुरू हो गया। संवेदनशील स्थानों पर अनियोजित निर्माण हुए। एक अगस्त 1867 में पहले भूकंप के झटके भी महसूस किए गए। इससे स्नोव्यू में भूस्खलन हुआ। इसके बाद 1869 में शेर का डांडा क्षेत्र में भूस्खलन हुआ। इतिहासविद् प्रो. अजय रावत के मुताबिक 18 सितंबर 1880 को पहला महाविनाशकारी भूस्खलन हुआ। तीन दिनों में 50 से 60 इंच तक वर्षा हो चुकी थी। इस दौरान हल्के भूकंप के झटके के बाद आल्मा पहाड़ी आठ सेकेंड में पिघलते लावे की तरह नीचे आ गई। इससे विक्टोरिया होटल, मि. बेल की बिसातखाने की दुकान, वास्तविक नैना देवी मंदिर व धर्मशाला दब गए। भूस्खलन में करीब 151 लोगों की मौत हो गई। जिनमें 108 भारतीय व 43 यूरोपीय लोग शामिल थे। हादसे के बाद अंग्रेजों ने 1890 तक 65 नालों का निर्माण कराया। जिन्हें शहर की धमनियां कहा गया। आज दुर्भाग्य से अवैध निर्माणों के कारण आधे से अधिक नालों व सह नालों पर अतिक्रमण कर उन्हें बंद कर दिया गया है।
आल्मा की पहाड़ी के अलावा शेर का डांडा क्षेत्र भूस्खलन की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील है। यहां निर्माण कार्य प्रतिबंधित है। झील से गुजरने वाली लेक थ्रस्ट का प्रभाव इस पहाड़ी पर भी है। यहां भूगर्भीय हलचलें जारी हैं। लोगों को बरसात के दिनों में एहतियात बरतने की जरूरत होगी।
- डा. बहादुर सिंह कोटलिया यूजीसी भूगर्भ वैज्ञानिक।