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बंटवारे के दुख की साझीदार हैं सरहद पार की ये गायें, जानें पूरी कहानी

पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे हरकिशन चड्ढा चकलुवा में रहते हैं। उम्र 90 वर्ष हो गई है, मगर अब भी उनकी आंखों में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का दर्द साफ महसूस किया जा सकता है।

By Skand ShuklaEdited By: Published: Wed, 19 Dec 2018 12:32 PM (IST)Updated: Thu, 20 Dec 2018 06:56 PM (IST)
बंटवारे के दुख की साझीदार हैं सरहद पार की ये गायें, जानें पूरी कहानी
बंटवारे के दुख की साझीदार हैं सरहद पार की ये गायें, जानें पूरी कहानी

हल्द्वानी, गणेश जोशी : पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे हरकिशन चड्ढा चकलुवा में रहते हैं। उम्र 90 वर्ष हो गई है, मगर अब भी उनकी आंखों में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का दर्द साफ महसूस किया जा सकता है। जीवन के इस सफर में उनके बंटवारे के दुख की साझीदार भी हैं। ये साझीदार सरहद से लाई गई गायें हैं, जिनके वंशज आज भी उनके आंगन में आबाद हैं।

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रावलपिंडी से भारत आया है ये परिवार

चकलुवा गांव हल्द्वानी से 20 किलोमीटर दूर है। बंटवारे के बाद वर्ष 1950 में हरकिशन चड्ढा का परिवार पाकिस्तान के रावलपिंडी से भारत आ गया था। तब उन्होंने हाईस्कूल तक की पढ़ाई की थी। परिवार के अन्य सदस्य दिल्ली में रहने लगे, लेकिन पेड़-पौधे, जंगल व जानवरों से बेहद लगाव रखने वाले हरकिशन का मन दिल्ली में नहीं लगा। वह अपने गुरु भगत देशराज से प्रेरित होकर हल्द्वानी के चकलुवा पहुंच गए। अपनी मेहनत व लगन से उन्होंने खेती-बाड़ी और पशुपालन शुरू किया। बंटवारे के बाद वह अपने साथ भारत-पाकिस्तान की सरहद के आसपास से 11 गायें लाए थे। साहिवाल प्रजाति की ये गायें उनके आंगन में पलने लगीं। इन गायों से उन्हें बेहद लगाव रहा।

गायों के दूध को बताते हैं अम्रित

इस उम्र में भी उनका अधिकांश समय इन्हीं गायों के बीच बीतता है। वह कहते हैं, इन गायों को देखकर बहुत खुश हो जाता हूं। गाय के दूध, घी में जो ताकत और ताजगी है, वैसी कहीं और नहीं। गोशाला में ही आंखों में चमक और शरीर को भींचते हुए वह कहने लगते हैं, '90 वर्ष की उम्र में भी मेरे अंदर की ताजगी इन्हीं गायों की बदौलत है। इन गायों के दूध में अमृत है अमृत। सबसे बड़ी बात है, सरहद यानी फाजल का बंगला समेत आसपास क्षेत्र की ये गायें मुझे आगे बढऩे के लिए प्रेरित करती हैं। इन गायों से मेरा बंटवारे का दर्द कम हो जाता है। अब तक इन गायों की कई पीढिय़ां हो गई हैं, लेकिन इस समय भी मेरे आंगन में बंधी 20 गायें उन्हीं के वंशज हैं।'

10 साल से अन्न छोड़ पीया इन गायों का दूध

हरकिशन ने 10 साल तक अन्न ग्रहण नहीं किया। बताने लगते हैं, 'इन्हीं गायों का दूध पीता था। इसके साथ ही शहद, घी व मक्खन ही खाता रहा। इससे ताजगी महसूस करता था, लेकिन बीमार होने की वजह से कुछ समय पहले से ही अन्न खाना शुरू किया है। उनका पेट का ऑपरेशन भी हुआ हैं।'

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