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गांधी जी को आभूषण दान

नैनीताल : सन 1929। देशभर में आजादी के आंदोलन की बयार थी। अपने कुमाऊं के युवा, महिला, बच्चे, वृद्ध भी

By Edited By: Published: Thu, 02 Oct 2014 03:21 AM (IST)Updated: Thu, 02 Oct 2014 01:30 AM (IST)
गांधी जी को आभूषण दान

नैनीताल : सन 1929। देशभर में आजादी के आंदोलन की बयार थी। अपने कुमाऊं के युवा, महिला, बच्चे, वृद्ध भी इस यज्ञ में आहुति देने को तत्पर थे। तभी महात्मा गांधी का कुमाऊं दौरा हुआ। जब नैनीताल में सभा हुई तो देवभूमि की नारियों ने उन्हें आजादी के लिए जेवर तक दान कर दिए। कौसानी पहुंचे तो प्रकृति ने उन्हें 15 दिन तक रोक लिया। इस अवधि में उन्होंने श्रीमद्भगवत गीता का अनुवाद किया। गांधी जी 1931 में फिर नैनीताल आए और पांच दिन ठहरे। असर यह हुआ कि उनके कुमाऊं दौरे के बाद सालम, बागेश्वर व सल्ट में बड़े आंदोलन हुए।

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संयुक्त प्रांत के कुमाऊं का दौरा गांधी जी ने 11 जून 1929 को अहमदाबाद से शुरू किया था। 13 जून को वह बरेली पहुंचे, जहां आयोजित बड़ी सभा में उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के साथ खादी का संदेश दिया। 14 जून को हल्द्वानी जोश जगाने के बाद वह नैनीताल के ताकुला ग्राम पहुंचे। यहां गोविंद लाल साह के मोती भवन में ठहरे। शाम को नैनीताल में सभा की, जिसमें पर्वतीय अंचलों की गरीबी का मुद्दा उठाया। अगले दिन सभा में बापू ने कहा, ''मैंने आप लोगों के कष्टों की गाथा यहां आने से पहले से सुन रखी थी, किंतु उसका उपाय तो आप लोगों के हाथ में है। यह उपाय है आत्म शुद्धि।'' 15 जून को उन्होंने ताकुला में गांधी आश्रम की स्थापना की। भवाली में सभा कर खादी अपनाने पर जोर दिया। 16 जून को उन्होंने ताड़ीखेत प्रेम विद्यालय में आत्म शुद्धि और खादी का संदेश दिया। 18 जून को अल्मोड़ा पहुंचे, जहां नगरपालिका की ओर से उन्हें सम्मान पत्र दिया गया। उन्होंने 15 दिन कौसानी में बिताए। वहां की खूबसूरती से मुग्ध होकर उसे 'भारत का स्विट्जरलैंड' नाम दिया। 22 जून को कुली उतार आंदोलन में अग्रणी रहे बागेश्वर का भ्रमण किया। वहां स्वतंत्रता सेनानी शांति लाल त्रिवेदी, बद्रीदत्त पांडे, देवदास गांधी, देवकीनंदन पांडे, मोहन जोशी से मंत्रणा की। 15 दिन के प्रवास के दौरान उन्होंने कौसानी में गीता का अनुवाद किया। 18 जून 1931 को गांधी जी दुबारा नैनीताल पहुंचे और पांच दिन ठहरे। उस दौरान उन्होंने संयुक्त प्रांत के गवर्नर मैलकम हैली से राजभवन में मुलाकात कर जनता की समस्याओं का निराकरण कराया। प्रांत के जमींदारों व ताल्लुकेदारों ने भी मुलाकात कर गांधी जी के समक्ष अपना पक्ष रखा। इस यात्रा के बाद उत्तर प्रदेश, कुमाऊं व गढ़वाल में स्वतंत्रता आंदोलन ने गति पकड़ ली थी।


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