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महाभारत से मिली थी रंगमंच को जान

जागरण संवाददाता, नैनीताल : महाभारत के पात्रों को हमने सिर्फ सुना है, देखा नहीं। इन पात्रों का अभिनय

By Edited By: Published: Wed, 03 Jun 2015 02:01 AM (IST)Updated: Wed, 03 Jun 2015 02:01 AM (IST)
महाभारत से मिली थी रंगमंच को जान

जागरण संवाददाता, नैनीताल : महाभारत के पात्रों को हमने सिर्फ सुना है, देखा नहीं। इन पात्रों का अभिनय बहुत मुश्किल है, लेकिन नैनीताल ने महाभारत से ही रंगमंच के मंच पर कदम रखा था। अभिमन्यु, द्रोपदी चीर हरण या फिर ऐसे कई किस्से जो महाभारत से जुड़े थे, उन्हें नाटकों के रूप में एक मंच पर प्रस्तुत किया गया। ड्रामा ने अपनी रफ्तार तो 1950 के बाद ही पकड़ ली थी। उसके बाद ऐसे-ऐसे नाटक नैनीताल ने देखे हैं, जिनकी आज युवा पीढ़ी कल्पना भी नहीं कर सकती और न ही उन नाटकों का दोबारा मंचन हो सका है।

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बड़े-बड़े नाटकों की मंचीय प्रस्तुति के बावजूद अब इस शहर से नाटक दूर हो चुके हैं। 1968 में पृथ्वी का स्वर्ग और 1971 में पागलखाना नाटक ऐसे रहे, जिन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर एक अलग नाम कमाया, पहचान बनाई। ऐसे नाटकों का दौर राज्य आंदोलन से पहले तक चलता रहा, लेकिन फिर थम गया। 1976 में युगमंच संस्था की स्थापना के बाद कलाकारों को मंच मिला था नाटक के लिए। 2004 तक इस संस्था के बैनर तले स्थानीय स्तर पर कई नाटकों का मंचन हुआ, लेकिन फिर नाटकों को वो रफ्तार नहीं मिला पाई। जिसका नैनीताल असल हकदार था। 1976 में युगमंच की ओर से पहले नाटक अंधा युग का मंचन किया गया। जिसका निर्देशन गिरीश तिवार गिर्दा ने किया था। उसके बाद अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा, नगाड़े खामोश हैं, जुलूस, उलझी आकृतियां, एक था गधा, नाटक जारी है, दाज्यू, कबिरा खड़ा बाजार में, इडिपस, खडि़यर का घेरा जैसे कई नाटकों की मंचीय प्रस्तुति दी गई। आज हाल यह हैं कि नाटकों के मंचन के लिए रंगकर्मी संघर्ष कर रहे हैं, आवाज उठा रहे हैं, लेकिन सत्ता के गलियारों में यह आवाज नक्कारखाने की तूती बनकर रह गई है। नाटकों के लिए अब यह शहर सिर्फ इंतजार कर रहा है और कुछ नहीं।


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