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उड़ने को अभी आसमान बाकी है

By Edited By: Published: Mon, 07 Apr 2014 01:48 AM (IST)Updated: Mon, 07 Apr 2014 01:48 AM (IST)
उड़ने को अभी आसमान बाकी है

- शादी से इन्कार पर नोएडा में एक सिरफिरे ने डाला था कविता पर तेजाब

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- तेजाब कांड में चेहरा खराब हुआ और आंखों की रोशनी भी जाती रही

- सामाजिक अवहेलना झेली, अब उठा रही कंधे पर पूरे परिवार का बोझ

सर्वेश तिवारी, हल्द्वानी

कविता में हौसलों की ये पंक्तियां सिमट गई हैं-'अभी नापी है मुट्ठी भर जमीं, उड़ने को अभी आसमान बाकी है।' अपने शहर के वही बहादुर बेटी कविता, जिसके चेहरे की रौनक और आंखों की रोशनी एक सिरफिरे ने छीन ली। तेजाब के साथ सिरफिरे की ईष्र्या की जलन और शरीर के साथ समाज के दिए दर्द को झेलते हुए कविता हारी नहीं। 'कविता' को तो जीतना होता है, इसलिए वह उठ खड़ी हुई परिवार का पूरा बोझ अपने कंधों पर उठाने के लिए।

आवास विकास की कविता बिष्ट की आंखें छह साल पहले तक जमाने के सारे रंग देख सकती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। नोएडा में एक सिरफिरे ने कविता का चेहरा तेजाब से जला दिया, जिसमें आंख की रोशनी भी चली गई। एक मुलाकात में कविता ने बताया कि वह नोएडा की एक आटो पा‌र्ट्स कंपनी में बतौर सुपरवाइजर काम करती थी। प्रेम प्रस्ताव को ठुकराने पर उसे यह दुर्गति झेलनी पड़ी। कविता अब भी देख नहीं सकती। एक साल उसका इलाज चला। कई दिन तक बेहोशी में रही कविता तब अपने गांव बगवाली पोखर रानीखेत पहुंची तो किसी ने उसे अंधा कहा तो किसी ने उसकी मां दीपा से कहा कि इससे अच्छा तो वह मर जाती। नाम के अनुरूप कविता ने हौसला नहीं खोया। हां, बेटी को बचाने में रोडवेज कर्मी पिता दिवान सिंह बिष्ट को नौकरी से जरूर हाथ धोना पड़ गया। इस बीच, अपना भविष्य बनाने कविता हल्द्वानी आ गई। अल्मोड़ा की एक संस्था ने उसे टाइपिंग, ब्रेल लिपि, चेयर और लिफाफा बनाना सिखाया, जो उसके काम नहीं आया। उसे एक हजार मिठाई डिब्बे बनाने के एवज में महज 70 रुपये मिलते थे और एक किलो लिफाफा तैयार करने के बाद महज 15 रुपये। जिंदगी मुश्किल थी। ऐसे में उसकी मदद तत्कालीन जिलाधिकारी निधिमणि त्रिपाठी ने की। आज वह बाल विकास परियोजना में नौकरी कर पूरे परिवार का बोझ उठा रही है।

मां-पिता का इलाज भी करा रही

एसिड का असर आज भी कविता की त्वचा पर है। उसके गले पर एक गांठ निकल आई है, जिसका ऑपरेशन होना है। पिता की नौकरी जा चुकी है और छोटा भाई मनोज महज ढाई हजार रुपये माह पर काम करता है। पिता बीमार हैं और मां की रीढ़ और गर्दन की हड्डी बढ़ रही है। दोनों ही जिम्मेदारी भी कविता थोड़ी तकलीफ में, लेकिन उठा रही है।

..तो मैं डालूंगी आरोपी पर तेजाब

कविता कानून के फैसले से नाखुश है। महज चार माह में ही कविता का आरोपी सलाखों से बाहर आ गया और केस बंद हो गया। वह केस रिओपन कराने की बात करती है। कहती है कि अगर अब भी उसे इंसाफ नहीं मिला तो वह खुद इंसाफ करेगी। जिस तेजाब ने उसकी जिंदगी खराब की वही तेजाब वह आरोपी पर डालेगी, ताकि उसको भी तेजाब से होने वाली जलन का एहसास हो सके।


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