पहले की देश सेवा, अब समाज सेवा जीवन का मकसद
रुड़की के राजेंद्र नगर निवासी सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर 73 वर्षीय शिवप्रसाद पंत ने पहले सेना में रहकर देश सेवा की। अब समाज सेवा को उन्होंने जीवन का मकसद बनाया है।
रुड़की, [जेएनएन]: वे उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जब इंसान की प्राथमिकता सुकून से जिंदगी गुजारने की होती है। बावजूद इसके उन्हें स्वयं और परिवार से अधिक गरीब और आपदा प्रभावितों की चिंता सालती रहती है। साथ ही मेधावी एवं जरूरतमंद नौनिहालों को चिह्नित कर उन्हें आर्थिक रूप से भी हरसंभव मदद करना भी उनके जीवन का शगल बन चुका है।
हम बात कर रहे हैं रुड़की के राजेंद्र नगर निवासी सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर 73 वर्षीय शिवप्रसाद पंत की। 32 साल थल सेना में रहकर पंत ने देश की सेवा की और 1986 में सेवानिवृत्त हो गए। लेकिन, इसके बाद भी उन्होंने अपने भीतर के सेवा के जज्बे को कम नहीं होने दिया और समाज सेवा करने की ठान ली।
शुरूआत में वे मैदान से लेकर पहाड़ तक के स्कूलों में जा-जाकर बच्चों को पढ़ने, जीवन में आगे बढ़ने और नैतिकता की शिक्षा देते थे। कई साल तक यह सिलसिला चलता रहा, लेकिन धीरे-धीरे जब उम्र हावी होने लगी तो उन्होंने प्रेरक व्याख्यान देने के लिए स्कूल-कॉलेज में जाना बंद कर दिया। हालांकि, दूसरों के दर्द को बांटने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
पंत इस उम्र में भी समय-समय पर पहाड़ों की कठिन यात्रा करते हैं और आर्थिक रूप से कमजोर मेधावी छात्रों को सहायता पहुंचाते हैं। उनकी पेंशन का एक बड़ा हिस्सा जरूरतमंदों की सहायता में खर्च होता है। पिछले कई सालों से उनके आवास पर सुबह-शाम योग की कक्षाएं भी चलती हैं। इसके लिए उन्होंने निश्शुल्क जगह उपलब्ध करवाई हुई है। गरीब कन्याओं की शादी में भी वे बराबर मदद करते हैं।
बकौल पंत, मेरे तीन बेटे और दो बेटियां हैं। दो बेटे सेना में और बेटियां भी सरकारी विभागों में उच्च पदों पर आसीन हैं। एक बेटा दिल्ली में प्राइवेट कंपनी में मैनेजर है। पत्नी लक्ष्मी अब इस दुनिया में नहीं है। सो, अब मेरे जीवन का मकसद सिर्फ समाज हित में कार्य करना है।
बसाएंगे दस आपदा पीड़ित परिवार
उत्तराखंड में समय-समय पर आपदाएं आती रहती हैं। इसमें सैकड़ों परिवार बेघर हो जाते हैं। इसे देखते हुए पंत ने अपने आवास परिसर में आपदा प्रभावित दस परिवारों के लिए दो-दो कमरों के आवास बनाए हुए हैं। अब उनकी चमोली व पिथौरागढ़ जिलों से पांच-पांच परिवार इन घरों में लाने की योजना है। यहां पर उनसे कोई किराया नहीं लिया जाएगा। साथ ही उनकी स्वयं के पैरों पर खड़ा होने में भी मदद दी जाएगी।
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