गंगा तट पर बिखरी पीतांबरी आभा
------------------ दिनेश कुकरेती, हरिद्वार ऋतुराज वसंत की आगवानी में प्रकृति झूम रही है और वाताव
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दिनेश कुकरेती, हरिद्वार
ऋतुराज वसंत की आगवानी में प्रकृति झूम रही है और वातावरण में गूंज रहा है मधुमास का सुमधुर संगीत। पंछियों का कलरव इस संगीत में सुर मिलाकर चारों दिशाओं को महका रहा है। ऐसे आध्यात्मिक वातावरण में कौन भला प्रकृति के इस रूप को हृदय में न बसाना चाहेगा। फिर गंगा तो जीवन का पर्याय है, उसके आंचल की छांव में तो जीवन महकेगा ही। शायद इसीलिए अर्द्धकुंभ के तीसरे स्नान पर श्रद्धालुओं की तादाद भले ही अपेक्षा से कुछ कम हो, लेकिन गंगा तट उल्लास में डूबे नजर आते हैं। लगता है, जैसे गंगा की लहरें भी वासंती उल्लास से ओतप्रोत हों।
ऋतुसंहार में महाकवि कालीदास कहते हैं, वृक्ष फूलों से लद गए हैं। जल में कमल खिल उठे हैं। पवन सुगंध से भर गया है। संध्याएं सुखद होने लगी हैं और च्नि अच्छे लगने लगे हैं। प्रिये, वसंत ऋतु में प्रत्येक वस्तु पहले से अधिक सुंदर हो गई है। वसंत ने बावड़ियों के जल को, मणियों से निर्मित मेखलाओं को, चंद्रमा की चांदनी और आम के वृक्षों को सौभाग्य प्रदान कर दिया है। देखा जाए तो यही सौभाग्य वसंत ने उन श्रद्धालुओं को भी प्रदान किया हुआ है, जो वसंत पंचमी के मौके पर पुण्य की डुबकियां लगाने गंगाद्वार की ओर चले आ रहे हैं। ग्रंथों में इस स्नान को ऋतु परिवर्तन का स्नान कहा गया है। माना जाता है कि इस तरह के संधि स्नान शरीर को वातावरण के अनुरूप ढालने में सहायक सिद्ध होते हैं। संभवत: इसीलिए वसंत पंचमी के मौके पर पंच प्रयाग से लेकर सभी प्रमुख नदियों के तट आस्था के प्रवाह में खिलखिला उठते हैं।
गंगाद्वार में भी ऐसा ही ²श्य साकार हो रहा है। गंगा के घाटों पर श्रद्धालुओं का सैलाब न उमड़ने के बावजूद रौनक बिखरी हुई है। अधिकांश श्रद्धालुओं के परिधानों की पीतांबरी आभा हृदय को आनंद की अनुभूति करा रही है। उन्हें देखकर लगता है, जैसे वे वसंत के स्वागत को ही यहां पहुंचे हैं। ब्रह्मकुंड पर देवभूमि के लोकवाद्यों की अनुगूंज कानों में शहद घोलती प्रतीत होती है। सबसे अहम बात यह कि श्रद्धालु पूरी तरह फुर्सत में डुबकियां लगा रहे हैं, लहरों के साथ अठखेलियां कर रहे हैं। ..यह सिलसिला भोर होने से लेकर सांझ ढलने तक निर्बाध चलता रहा और उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे भी चलता रहेगा।