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महामंडलेश्वर बनने के लिए 10 साल अखाड़े में धर्म सेवा जरूरी

-आसान नहीं है महामंडलेश्वर बनने की राह ------------- जागरण संवाददाता, हरिद्वार : बीयर बार संचाल

By Edited By: Published: Wed, 05 Aug 2015 01:00 AM (IST)Updated: Wed, 05 Aug 2015 01:00 AM (IST)
महामंडलेश्वर बनने के लिए 10 साल अखाड़े में धर्म सेवा जरूरी

-आसान नहीं है महामंडलेश्वर बनने की राह

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जागरण संवाददाता, हरिद्वार : बीयर बार संचालक सचिन दत्ता के स्वामी सच्चिदानंद गिरि के रूप में महामंडलेश्वर बनने के बाद मचे बवाल के बीच यह बहस भी तेज हो गई है कि इस महत्वपूर्ण पदवी के लिए परंपराओं और नियमों को ताक पर रखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि 31 जुलाई को गुरु पूíणमा के दिन सचिन गृहस्थ जीवन से संन्यासी बने और उसी दिन उन्हें महामंडलेश्वर भी बना दिया गया। नई अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने भी स्वीकार किया कि दोनों रस्में गुरु पूíणमा के दिन ही निभाई गई।

महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रविन्द्रपुरी महाराज के अनुसार संन्यास की प्रक्रिया जटिल है और महामंडलेश्वर बनने के लिए संन्यासी होना अनिवार्य है। उन्होंने बताया कि संन्यास की प्रक्रिया दो तरीके से संपन्न कराई जाती है। पहली बाल्यकाल और दूसरी गृहस्थ आश्रम की जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद। गृहस्थ आश्रम से वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश के दौरान वह व्यक्ति किसी अखाड़े से जुड़े।

बड़ा अखाड़ा उदासीन के महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद बताते हैं कि किसी भी व्यक्ति को अखाड़ों में कम से कम दस वर्ष तक धर्म और लोक सेवा करनी होती है। इन लोगों के आचार-व्यवहार पर अखाड़े के प्रमुख संतों की समिति नजर रखती है। समिति के मानदंडों पर खरा उतरने के बाद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कुंभ में विधि विधान के साथ संन्यास दीक्षा देते हैं। संन्यास दीक्षा में व्यक्ति को अपना मुंडन संस्कार, क्रिया-कर्म व पिण्ड-दान करना होता है। पिण्डदान के बाद संन्यासी बनाने की प्रक्रिया का सबसे अहम पड़ाव ह 'विजयाहोम'। इसे आचार्य महामंडलेश्वर संपादित करते हैं। इस प्रक्रिया को सार्वजनिक नहीं किया जाता।

भारत साधु समाज के राष्ट्रीय सचिव स्वामी ऋषिश्वरानंद ने बताया कि अखाड़े में वास के दौरान उस व्यक्ति को वानप्रस्थ आश्रम के नियम-कायदे का धर्म सम्मत तरीके से पालन करते हुए धर्म, शास्त्र, वेद, पुराण और अन्य धर्मग्रन्थों का पठन-पाठन करना होता है।

संन्यास दीक्षा पूरी करने के बाद वह अखाड़े में फिर से सेवा कार्य करता है और इस दौरान अखाड़े के प्रमुख संतों की समिति उसके आचार व्यवहार पर नजर रखती है। इसके बाद यदि वह मानदंडों में खरा उतरता है तो समिति की सिफारिश पर उसे महामंडलेश्वर की पदवी के लिए चुना जाता है। अखाड़ा परिषद के प्रवक्ता बाबा हठयोगी बताते हैं कि अखाड़े में महामंडलेश्वर की अपनी मंडली होती है।

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महामंडलेश्वर बनने के लिए नियम

-सनातन धर्म और देवी-देवताओं में आस्था

-दस वर्षों तक अखाड़े में धर्म सेवा का कार्य किया हो

- ¨हदू धर्म, वेद, पुराण और अन्य धर्म शास्त्रों का ज्ञान, शास्त्रार्थ, प्रवचन करने की क्षमता

-दस वर्ष बाद कुंभ में ली गई हो संन्यास दीक्षा

-अखाड़े की उच्चस्तरीय समिति से चयनित होने पर सभी तेरह अखाड़ों के प्रमुख पदाधिकारियों, महामंडलेश्वरों द्वारा आचार्य महामंडलेश्वर की उपस्थिति में महंताई चादर प्रदान की जाती है

-सभी तेरह अखाड़ों की सहज स्वीकृति के बाद ही व्यक्ति महामंडलेश्वर पदवी को धारण करने का अधिकारी बनता है

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