'व्यवहार के आंसू, होते नहीं बेकार ये आंसू'
संवाद सहयोगी, हरिद्वार: सुमेरु साहित्यिक काव्य मंच की ओर से मंगलवार को स्थानीय भवन में आयोजित काव्य
संवाद सहयोगी, हरिद्वार: सुमेरु साहित्यिक काव्य मंच की ओर से मंगलवार को स्थानीय भवन में आयोजित काव्य संध्या में कवि पं. ज्वालाप्रसाद शाण्डिल्य को सुमेरु संस्था की ओर से साहित्य-साधनार्थ, ब्रह्मकमल सम्मान से सम्मानित किया गया।
काव्य संध्या में कवि संस्था के संस्थापक आचार्य राधेश्याम ने कहा कि कवि अपने युग को आंसुओं से सींचता है, ताकि भावी पीढ़ी उसके मधुरफल का आस्वादन कर सके। यही कवि का कर्म है। कवि भारतेन्द्र ने काव्यपाठ करते हुए कहा कि संघर्षों की पीड़ाओं में, धुनकी के है बोल निराले, धुन धुना रे प्यारे धुन धुना। कवि माधवेन्द्र ¨सह ने कहा कि मौहल्ले की जिस गली में हम बसे हुए है, वहां दिल मिले न मिले, घर मिले हुए है। कवि बृजेन्द्र हर्ष ने कहा कि रहते हैं आंख में व्यवहार के आंसू, कैसे भी हो होते नहीं बेकार ये आंसू। कवि सुभाष मलिक ने कहा कि जिसकी माटी में पसीना महकता था पांव का, अब मुझे मिलता नहीं है रास्ता वो गांव का। कवि प्रफ्फुल ध्यानी ने कहा कि गायेगा मन मधुर अपनी ही धुन में, मैंने सोचा हरित वृक्षों से घिरा मेरा घर होगा। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मोहनलाल बाबूलकर मौजूद थे। इस अवसर पर डॉ. श्याम बनौधा तालिब, महेन्द्र माही, कु. पूनम, डा. मीरा भारद्वाज, गांगेय कमल, उमेश शर्मा, केएल दिवान आदि ने काव्य पाठ किया। काव्य संध्या की अध्यक्षता डा. एसपी सुन्दरियाल ने तथा संचालन आचार्य राधेश्याम सेमवाल ने किया। सरस्वती वंदना भारतेन्द्र भट्ट ने प्रस्तुत की।