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गांव का रास्ता बंद करने पर भड़के ग्रामीण, रेलवे प्रशासन के रवैये पर जताई नाराजगी

मोतीचूर गांव को जाने वाले रास्ते पर रेलवे प्रशसन ने लोहे के अवरोधक लगाकर रास्ता बंद कर दिया। रास्ता बंद होने के बाद ग्रामीण भड़क गए।

By Edited By: Published: Tue, 26 May 2020 07:11 PM (IST)Updated: Tue, 26 May 2020 10:39 PM (IST)
गांव का रास्ता बंद करने पर भड़के ग्रामीण, रेलवे प्रशासन के रवैये पर जताई नाराजगी
गांव का रास्ता बंद करने पर भड़के ग्रामीण, रेलवे प्रशासन के रवैये पर जताई नाराजगी

रायवाला (देहरादून), जेएनएन। मोतीचूर गांव को जाने वाले रास्ते पर रेलवे प्रशसन ने लोहे के अवरोधक लगाकर रास्ता बंद कर दिया। रास्ता बंद होने के बाद ग्रामीण भड़क गए। उन्होंने रेलवे प्रशासन के रवैये पर नाराजगी जताई।

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मंगलवार को रेलवे कर्मियों ने मोतीचूर गांव के रास्ते पर अवरोधक लगाने शुरू किए। इसकी सूचना पर बड़ी संख्या में ग्रामीण एकत्र हो गए। उन्होंने इसके विरोध में प्रदर्शन किया और धरना शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि रेलवे के मनमानी की तो वह रेल ट्रैक पर लेट जाएंगे। ग्रामीणों का उग्र रूप देखकर रेलवे कर्मियों ने अवरोधक हटा दिए। दरअसल, रेलवे इस रास्ते को अवैध बताता है। रेलवे प्रशासन ने पहले भी इस रास्ते को बंद करने की कोशिश की थी। ग्रामीणों का कहना था कि आश्वासन के बावजूद प्रशासन और जनप्रतिनिधियों द्वारा इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं कराया जा रहा है, जिससे ग्रामीणों को मुसीबत झेलनी पड़ रही है। विरोध करने वालों में पूर्व ग्राम प्रधान प्रेमलाल शर्मा, विक्रांत भारद्वाज, मुकेश मनोड़ी, मोहित शर्मा, कार्तिक शुक्ला, विनय थापा आदि रहे। 

यह है समस्या 

मोतीचूर गांव तक पहुंचने के लिए लोगों को रेलवे ट्रैक पार करके जाना पड़ता है। दरअसल अस्सी के दशक में बरसाती नदी में आई बाढ़ के बाद यहां से हाईवे और रेलवे फाटक को सुखी नदी पार शिफ्ट कर दिया गया। इस दौरान मोतीचूर गांव में रहने वाले परिवारों का ध्यान नहीं रखा गया। गांव के लिए अलग से पुल भी नहीं बनाया गया। ऐसे में रेलवे ट्रैक को पार करके जाना लोगों की मजबूरी बन गई हैं।

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2017 में ग्रामीणों ने किया था आंदोलन 

2017 के विधानसभा चुनाव में मोतीचूर के ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार का एलान किया था। इतना ही नहीं चुनाव के दौरान ग्रामीणों ने 'सड़क नहीं तो वोट नहीं' के नोटिस अपने घरों के गेट पर चस्पा कर दिए थे। उस वक्त विधायक प्रत्याशियों ने बकायदा शपथ पत्र देकर ग्रामीणों की समस्या का समाधान कराने का आश्वासन दिया था। मगर, चुनाव के बाद निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने तो दूर अन्य नेताओं ने भी इस गांव का रुख नहीं किया।

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