उत्तराखंड स्वरोत्सव: लोक के रंगों में सजी यादगार शाम
दैनिक जागरण की ओर से सजी 'उत्तराखंड स्वरोत्सव' की शाम का आगाज लोक गायक प्रीतम भरतवाण ने आह्वान जागर और जागर गायिका पद्मश्री बसंती बिष्ट ने 'द्यवतौं बिजी जावा से किया।
देहरादून, [जेएनएन]: सुर, संगीत व नृत्य एक साथ मिले और झूम उठी 'उत्तराखंड स्वरोत्सव' की शाम। यह ऐसी शाम थी, जिसे शब्दों में समेटना आसान नहीं। फिर एक साथ लोक के रंग में रंगी दो पीढ़ियां मंच पर हों तो यह और भी कठिन हो जाता है। बस, हम तो यही कह सकते हैं कि वाह! क्या मनमोहक शाम थी, जिसने श्रोताओं एवं दर्शकों के हृदय के तारों को झंकृत कर दिया। सुर-संगीत की ऐसी बयार चली कदम बैठे-बैठे थिरकने लगे और विवश हो गए हाथ ताल से ताल मिलाने के लिए।
ग्राफिक एरा ऑडिटोरियम हिल यूनिवर्सिटी में दैनिक जागरण की ओर से सजी इस शाम का आगाज लोक गायक प्रीतम भरतवाण ने आह्वान जागर 'राम गंगा नयेला, द्यवतौं, शिव गंगा नयेला' और जागर गायिका पद्मश्री बसंती बिष्ट ने 'द्यवतौं बिजी जावा, भगवानै बिजी जावा' से किया।
इसके बाद माहौल में रंग भर लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी की प्रस्तुति 'मेला थौलों मा, थौला रौलों मा, सजि-धजी जाणी होली, धकद्यांदी जिकुड़ी, रगर्यांदी आंखी, कैथे खुज्यांणी होली' ने। माहौल रंगीन होने लगा और मंच पर नमुदार हुए प्रयोगधर्मी युवा गायक किशन महिपाल। उन्होंने जब 'स्याली बंपाली, वो स्याली बंपाली, त्वे मिलणू औलू...' की प्रस्तुति दी तो महफिल शृंगारित हो उठी।
इस माहौल में मुस्कान बिखेरी लोक गायिका अनुराधा निराला की प्रस्तुति 'मुल-मुल क्वोकू हैंसणी छै तू, हे कुलैं की डाली' और 'लस्का-ढस्का मा चली, मेरी फूंदी-धौंप्यली, कबि य्यीं पाल लस्स, कबि व्वीं पाल लस्स' ने। पर, बात यहीं रुकने वाली कहां थी, नेगी दा ने नया तराना छेड़ दिया, 'इनी होली, उनी होली, मेरी सौंज्यड़्या बाद कन होली धौ कुज्याण।' ऐसे माहौल में भला किसका दिल नहीं धड़कने लगेगा। फिर उन्होंने अनुराधा के साथ 'ज्यू त यन बुनू चा, नाचि-नाचि की, नचै द्यों त्वे हथौं-हथौं मा धारी की' जैसे युवा दिलों को छू जाने वाले युगल गीत की प्रस्तुति दी।
अब बारी थी लोक गायक प्रीतम भरतवाण की। उन्होंने अपने प्रसिद्ध गीत 'मोहना तेरी मुरली बाजी, ग्वाल-बालौं का संग, बारा बरसा की तपस्या नारी कै जांद भंग' के साथ ही पंडौं जागर 'खेला पांसो, पंडौं खेला पांसो' की ऐसी छटा बिखेरी कि पूरा ऑडिटोरियम झंकृत हो उठा। जबकि, लोक गायिका संगीता ढौंडियाल ने कुमाऊंनी गीत 'मैं लागी सुआ घुट-घुट बडूली, न जणि किलै घुट-घुट बडूली', 'हाइ कखड़ि झिल मा, लूण पिसो सिल मा' और 'बेडु पाको बारामासा, नारैणा काफल पाको चैता, मेरी छैला' की तन-मन को झुमाने वाली प्रस्तुतियां दीं।
नई पीढ़ी को लोक के रंग में डुबो देने वाले युवा गायक किशन महिपाल के बिना महफिल भला कहां पूर्णता पा सकती थी। उन्होंने अपने निराले अंदाज में जब गीत 'किंगरी का झाला घुघूती...घुर्र घुरांदी घुघूती, बल फुर्र उड़ांदी घुघूती' की प्रस्तुति दी तो श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनका अभिनंदन किया। अगली प्रस्तुति 'फ्यूंलड़ियों त्वै देखि की औंदा ये मन मा, तेरो-मेरो साथ छयो पैलो जनम मा' ने तो महफिल का किशन का दीवाना बना दिया।
और...आखिर में सबकी फरमाइश पर नेगी दा ने 'ठंडो रे ठंडो, मेरा पाड़ै की हवा ठंडी, पाणी ठंडो' की प्रस्तुति से उत्तराखंड स्वरोत्सव की इस शाम को यादगार बना दिया। कार्यक्रम का सफल संचालन अजय जोशी ने किया।
यह भी पढ़ें: कैलास मानसरोवर यात्रा पहला दल पहुंचा डारछेन, करेंगे कैलास की परिक्रमा