उत्तराखंड के इस गांव में स्वयं के प्रयास से हर घर में बना शौचालय, जानिए
स्वच्छ भारत अभियान में सहयोगी बने देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार में स्थित सलगा गांव के ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी मदद के स्वच्छता की अनूठी मिसाल पेश की है।
देहरादून, चंदराम राजगुरु। स्वच्छ भारत अभियान में सहयोगी बने उत्तराखंड के देहरादून जिला स्थित जनजातीय सलगा गांव के ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी मदद के स्वच्छता की अनूठी मिसाल पेश की है। ग्रामीणों की इस मुहिम में सहयोगी बनी पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रही पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी की संस्था 'हेस्को'। सरकारी तंत्र की बेरुखी से खफा लोगों ने संस्था के सहयोग से न सिर्फ गांव को खुले में शौच से मुक्ति दिलाई, बल्कि श्रमदान कर गांव के लिए डेढ़ किमी लंबी नई पाइप लाइन भी बिछाई। अब ग्रामीण इस गांव को आदर्श गांव बनाने के प्रयास में जुट गए हैं।
हिमालयी पर्यावरण अध्ययन व संरक्षण संस्था (हेस्को) उन्हें आत्मनिर्भर बनाने, गांव में खेतीबाड़ी और मवेशी पालन करने में सहयोग कर रही है। सरकारी दस्तावेजों में भले ही उत्तराखंड ओडीएफ घोषित हो चुका हो, लेकिन पर्वतीय क्षेत्र के सुदूरवर्ती इलाकों की तस्वीर इससे पूरी तरह भिन्न है। इसमें देहरादून जिले का जनजाति बहुल क्षेत्र जौनसार-बावर भी शामिल है। इस सबके बावजूद क्षेत्र के कालसी ब्लॉक का सलगा गांव अपनी कहानी खुद गढ़ रहा है।
करीब 500 की आबादी वाले सलगा गांव में कुल 34 परिवार रहते हैं, जिसमें से 19 घरों में तो पहले से शौचालय बने थे, लेकिन 15 घरों में शौचालय की सुविधा नहीं होने से ग्रामीण खुले में शौच करने को मजबूर थे। इतना ही नहीं, गांव में पेयजल समस्या के चलते पहले से बने शौचालयों का भी उपयोग नहीं हो पा रहा था।
सलगा निवासी मोलू सिंह नेगी व तुलसी नेगी बताते हैं कि इस संबंध में ग्रामीणों ने कई दफा शासन-प्रशासन के समक्ष अपनी बात रखी, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। ऐसे में तंत्र की बेरुखी से खफा ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी मदद के श्रमदान कर गांव को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने और पेयजल समस्या हल करने का संकल्प लिया। इसमें ग्रामीणों की सहयोगी बनी हेस्को संस्था। हेस्को की मदद से शौचालयविहीन 15 घरों में नए शौचालयों का निर्माण हुआ और इस तरह हर घर में शौचालय बनने से सलगा गांव खुले में शौच से मुक्त हो गया।
अब शौच की समस्या न पानी की
शौचालय बनने के बाद समस्या पानी की थी। लिहाजा ग्रामीणों ने संस्था की मदद से डेढ़ किमी दूर चरगाडा खड्ड से गांव के लिए नई पाइप लाइन बिछाई। इससे गांव में सालभर रहने वाला पेयजल संकट भी खत्म हो गया।
गांव में लगे दो कूड़ेदान और पांच बायो गैस प्लांट
हेस्को की मदद से सलगा गांव में बस्ती के बीच दो कूड़ेदान लगाए गए हैं। सभी लोग इनमें अपने घरों का कूड़ा डालते हैं। पांच घरों में बायो गैस प्लांट लगाए गए हैं। साथ ही प्लांट से रसोई तक गैस की लाइन भी बिछाई गई है। इससे लोग गोबर गैस में ही खाना पकाते हैं। इसके अलावा दो घरों में प्रयोग के तौर पर सोलर लाइट भी लगाई गई हैं।
प्रति परिवार दी गई तीन-तीन बकरियां
सलगा गांव में सभी ग्रामीण परिवार खेती-किसानी के साथ मवेशी पालन भी करते हैं। इसे देखते हुए हेस्को की ओर से हर परिवार को तीन-तीन बकरियां दी गई हैं। संस्था ने काश्तकारों को बागवानी के लिए मौसमी, नींबू व अनार के पौधे और खेतीबाड़ी के लिए मक्का, मंडुवा, मटर, मसूर, बीन, अदरक, गोभी, गाजर, लहसुन आदि के बीज उपलब्ध कराए हैं।
गांव के लोहार और नाई ने शुरू किया काम
इस पहल से जुड़े प्रमोद बताते हैं कि परंपरागत कामकाज छोड़ चुके लोहार हगाडूदास और नाई दलू वर्मा ने फिर से अपना काम जमा लिया है। हेस्को ने इन दोनों को जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए हैं।
14 घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग
सलगा की निरमा व मानसी नेगी बताती हैं कि वर्षा जल संरक्षण के लिए संस्था के सहयोग से गांव के 14 घरों की छत पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग पाइप लगाए हैं। ताकि बरसाती पानी को एकत्र कर उससे खेतों की सिंचाई की जा सके।
सलगा के ग्रामीण हैं काफी जागरूक
पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी (संस्थापक हेस्को संस्था) का कहना है कि सलगा के ग्रामीण काफी जागरूक हैं। उनकी कड़ी मेहनत ने ही गांव की तस्वीर बदली है। उन्होंने श्रमदान कर गांव का पेयजल संकट भी दूर कर लिया है। अब हेस्को का प्रयास गांव में लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है।
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