आरटीआइ कार्यकर्ता भूपेंद्र कुमार के प्रयास से सामने आया आपदा राहत का सच
जून 2013 की उत्तराखंड त्रास्दी में पीड़ितों को राहत के पहुंचाने गए कार्मिकों ने किस तरह सरकारी खर्चे पर मौज उड़ाई और राहत कार्यों में अनियमितताएं बरती यह जानकारी आरटीआइ कार्यकर्ता देहरादून निवासी भूपेंद्र कुमार के अथक प्रयास के बाद ही सामने आ पाई।
देहरादून। जून 2013 की उत्तराखंड त्रास्दी में पीड़ितों को राहत के पहुंचाने गए कार्मिकों ने किस तरह सरकारी खर्चे पर मौज उड़ाई और राहत कार्यों में अनियमितताएं बरती यह जानकारी आरटीआइ कार्यकर्ता देहरादून निवासी भूपेंद्र कुमार के अथक प्रयास के बाद ही सामने आ पाई।
आपदा के समय जिस तरह लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तड़फ रहे थे, उसे देखते हुए उनके मन में आपदा राहत कार्यों की सच्चाई जानने का ख्याल आया। इसके लिए उन्होंने रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ व बागेश्वर के जिलाधिकारियों से आरटीआइ में सूचना मांगी। आशंका के अनुरूप उन्हें सूचनाएं लेने में डेढ़ साल का लंबा समय लग गया।
सूचना के लिए उन्हें सूचना आयोग का दरवाजा भी खटखटाना पड़ा।
देहरादून के नेहरू कालोनी निवासी भूपेंद्र कुमार जनहित के मुद्दों पर पहले भी मुखरता के साथ आरटीआइ के तहत लड़ाई लड़ चुके हैं। सौ से अधिक सूचना के अधिकार के आवेदन लगा चुके भूपेंद्र कुमार तमाम मसलों पर फाइलों में दफन सच्चाई को न सिर्फ बाहर निकालने में सफल रहे, बल्कि सिस्टम को अपेक्षित कार्रवाई के लिए मजबूर भी करते रहे।
उन्होंने बताया कि कुछ हालिया सूचनाओं पर उनके प्रयास से कैदियों को पेशी पर लाने वाले पुलिस कर्मियों के लिए दोपहर के भोजन की व्यवस्था की जा चुकी है। लावारिश शवों के दाह संस्कार के लिए तीन हजार रुपये की व्यवस्था जैसा भी निर्णय भी सरकार से किया जा रहा है। यही नहीं पेशी पर आने वाले कैदियों के लिए फल आदि की व्यवस्था भी उनके प्रयास से परवान चढ़ी।
पढ़ें- उत्तराखंड आपदा राहत के नाम पर लूट, सीएम ने दिए जांच के आदेश