सेवा और भक्ति का विराट रूप है छठ
जागरण संवाददाता, देहरादून: छठ व्रत लोकपर्व है। यह एक कठिन तपस्या की तरह है। लेकिन, इसमें न कोई पंडित
जागरण संवाददाता, देहरादून: छठ व्रत लोकपर्व है। यह एक कठिन तपस्या की तरह है। लेकिन, इसमें न कोई पंडित होता है, न कोई जात-पात। छठी माता के साथ इस पर्व पर होती है सूर्य की आराधना। पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली सभी सामग्री प्राकृतिक होती है। उल्लास से लबरेज इस पर्व में सेवा और भक्ति भाव का विराट रूप दिखता है।
छठी माता और सूर्योपासना का यह अनुपम पर्व पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी, पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और अध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न विशाल पंडाल की जरूरत होती है, न ही भव्य सजे मंदिर और मूर्तियों की। सभी तरह के शोर से दूर यह पर्व बांस निर्मित सूप व टोकरी, मिट्टी के बर्तन, गन्ना का रस, गुड़, साठी का चावल, गेहूं से निर्मित प्रसाद और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की मिठास का प्रसार करता है। इस पर्व का केंद्र वेद-पुराण जैसे धर्मग्रंथ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है।
छठ के व्रत में न पंडित की जरूरत पड़ती है, न किसी गुरु की ही। जरूरत होती है तो सभी के साथ की। सभी कृतज्ञतापूर्वक सहर्ष सेवा को तैयार रहते हैं। खास बात यह कि इस पर्व को मनाने के पूर्वाचल और बिहार के लोग सरकार के इंतजामों भी का इंतजार नहीं करते। सभी एकजुट होकर घाटों की सफाई से लेकर अन्य तैयारियों में जुट जाते हैं। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व पर दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्मो का अद्भुत प्रदर्शन होता है।
बिहारी महासभा के अध्यक्ष सतेंद्र सिंह का कहना है कि छठ लोक आस्था का पर्व है। सभी एक दूसरे की मदद करते हुए इस पर्व को मनाते हैं। छठ में प्रकृति की पूजा की जाती है। वह फिर छठी माता हो या शक्ति के स्रोत सूर्यदेव।
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27 अक्टूबर: नहाय-खाय
इस दिन व्रती सुबह नहाकर लौकी और चावल से बने प्रसाद को ग्रहण करते हैं।
28 अक्टूबर: खरना
खरना के दिन उपवास शुरू होता है और परिवार की श्रेष्ठ महिला 12 घंटे का निर्जला उपवास करती हैं। शाम के वक्त छठी माता को साठी चावल से बनी खीर और रोटी से बना प्रसाद चढ़ाया जाता है। साथ ही तमाम मौसमी फल छठी मां को अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद खीर और रोटी के प्रसाद से महिलाएं निवृत्त होती हैं। व्रत को श्रेष्ठ महिला के अलावा अन्य महिलाएं व पुरुष भी कर सकते हैं।
29 अक्टूबर: संध्या अर्घ्य (पहला अर्घ्य)
खरना का उपवास खोलते ही महिलाएं 36 घंटे के लिए निर्जला उपवास ग्रहण करती हैं। पहले अर्घ्य के दिन बांस की टोकरी में अर्घ्य की सामग्री सजाई जाती है। शाम के वक्त व्रती नदी किनारे घाट पर एकत्र होकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
30 अक्टूबर: उषा अर्घ्य (दूसरा अर्घ्य)
इस दिन सूर्य उदय से पहले ही व्रती घाट पर एकत्र हो जाते हैं और उगते सूरज को अर्घ्य देकर छठ व्रत का पारण करते हैं। अर्घ्य देने के बाद महिलाएं कच्चे दूध का शरबत पीती हैं।
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आज करेंगे घाट की सफाई
बिहारी महासभा के अध्यक्ष सतेंद्र सिंह ने बताया कि रविवार को छठ पूजा की तैयारी के लिए टपकेश्वर स्थित तमसा घाट पर सफाई अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने बताया कि छठ पर्व खत्म होने के बाद भी घाट की सफाई की जाएगी।