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उत्तराखंडः छात्रवृत्ति घोटाले की दोबारा सीबीआइ जांच की सिफारिश

शासन ने समाज कल्याण विभाग की ओर से अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विद्यार्थियों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति में 100 करोड़ रुपये से अधिक के घपले की सीबीआइ जांच की सिफारिश की है।

By BhanuEdited By: Published: Sat, 12 Aug 2017 09:40 AM (IST)Updated: Sat, 12 Aug 2017 10:45 PM (IST)
उत्तराखंडः छात्रवृत्ति घोटाले की दोबारा सीबीआइ जांच की सिफारिश
उत्तराखंडः छात्रवृत्ति घोटाले की दोबारा सीबीआइ जांच की सिफारिश

देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: समाज कल्याण विभाग की ओर से अनुसूचित जाति एवं जनजाति के विद्यार्थियों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति में 100 करोड़ रुपये से अधिक का घपला फिर सुर्खियों में है। शासन ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए इसकी सीबीआइ जांच की सिफारिश की है। 

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हालांकि, इससे पहले हुई मामले की प्रारंभिक जांच के बाद भी सीबीआइ जांच की सिफारिश की गई थी, मगर तब मामले की पड़ताल विशेष जांच दल (एसआइटी) से कराने का निर्णय लिया गया। तीन माह के भीतर जांच रिपोर्ट सौंपी जानी थी, मगर एसआइटी का कोई अता-पता नहीं, जबकि तय समयावधि भी खत्म होने को है।

पिछले वर्ष यह बात सामने आई थी कि उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में निजी शैक्षणिक संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्रों के नाम पर समाज कल्याण विभाग से छात्रों के एडमिशन व पढ़ाई के लिए छात्रवृति दी गई। खासबात यह है कि इन निजी संस्थाओं में राज्य के किसी भी छात्र ने पढ़ाई नहीं की।

मामला प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी पहुंचा और शासन को प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराने के निर्देश दिए गए। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने पड़ताल कराई तो मामले में विभागीय अफसरों की संलिप्तता की पुष्टि हुई। तब विजिलेंस जांच की बात भी हुई, मगर बात आई-गई हो गई। इस वर्ष आचार संहिता के दरम्यान शासन ने प्रकरण की जांच तत्कालीन अपर सचिव वी षणमुगम को सौंपी। 

नई सरकार के गठन पर उनसे जांच वापस ले ली गई, पर तब तक वे प्रारंभिक रिपोर्ट शासन को सौंप चुके थे। प्रारंभिक जांच में ही 15 करोड़ रुपये से अधिक के घपले की बात सामने आई और इसके और ज्यादा होने की संभावना जताई गई। साथ ही प्रकरण की सीबीआइ जांच की संस्तुति की गई।

बावजूद इसके, जांच किसी को नहीं सौंपी गई। अलबत्ता, शासन ने समाज कल्याण विभाग की ओर से चलाई जा रही पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजनाओं के तहत प्रदेश और प्रदेश के बाहर सहायता प्राप्त व निजी कालेज व विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे लाभार्थियों का सत्यापन करने के साथ ही पुराने मामलों की जांच के लिए वित्तीय वर्ष 2014-15, 2015-16 और 2016-17 के लाभार्थियों के सत्यापन के निर्देश अवश्य दिए। 

यही नहीं, इस बहुचर्चित प्रकरण को लेकर सियासत भी गरमाई। कांग्रेस ने इसे राजनीतिक मुद्दा बनाया तो भाजपा नेता रविंद्र जुगरान ने भी तत्कालीन अपर सचिव वी षणमुगम की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर प्रकरण की सीबीआइ जांच की मांग उठाई। 

बीती 17 मई को सरकार ने सीबीआइ की बजाए मामले की जांच एसआइटी से कराने के निर्देश दिए, जिसे तीन माह के भीतर रिपोर्ट सौंपनी थी। मामले में जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो अब रविंद्र जुगरान ने पुन: इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से की।

सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री ने प्रकरण पर जांच कर कार्रवाई के निर्देश दिए। इससे शासन में फिर हलचल मची। सूत्रों ने बताया कि शुक्रवार को शासन ने प्रकरण की जांच सीबीआइ से कराने के संबंध में मुख्य सचिव एस रामास्वामी को संस्तुति की है। 

उधर, इस बारे में पूछे जाने पर अपर सचिव समाज कल्याण मनोज चंद्रन ने बताया कि उच्च अनुमोदन के लिए जांच के बिंदु पर निर्णय लेने के लिए प्रकरण को उच्चाधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।

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