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जानलेवा हमले में 39 साल बाद हुई सजा, दोषी ऐसे आया गिरफ्त में

अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश चतुर्थ शंकर राज की अदालत ने वर्ष 1980 में हुए जानलेवा हमले के मामले के दोषी को 39 साल बाद सजा का ऐलान किया।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 07:25 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 07:25 PM (IST)
जानलेवा हमले में 39 साल बाद हुई सजा, दोषी ऐसे आया गिरफ्त में
जानलेवा हमले में 39 साल बाद हुई सजा, दोषी ऐसे आया गिरफ्त में

देहरादून, जेएनएन। कानून के हाथ लंबे होते हैं। यह बात एक बार फिर तब प्रमाणित हो गई, जब अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश चतुर्थ शंकर राज की अदालत ने वर्ष 1980 में हुए जानलेवा हमले के मामले के दोषी को 39 साल बाद सजा का ऐलान किया। दोषी 33 साल तक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में छिपा रहा, लेकिन पुलिस को उसकी भनक तक नहीं लगने पाई। पिछले साल सितंबर महीने में वह पुश्तैनी जमीन की रजिस्ट्री करने आया, तब पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया।

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सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता जया ठाकुर ने अदालत को बताया कि घटना 21 सितंबर 1980 की है। छोटेलाल पुत्र सूरजबली कुर्मी निवासी डीएल रोड नालापानी क्षेत्र (देहरादून) में अमरूद के एक बाग की रखवाली करता था। आरोपित सुरेश सिंह पुत्र स्व. इंदर सिंह निवासी ग्राम चंदौटी राजपुर, देहरादून दिन में करीब दो बजे बाग में आया और छोटेलाल से बाग की रखवाली छोड़ने को कहा। छोटेलाल ने विरोध किया तो सुरेश ने तमंचे से उस पर फायर झोंक दिया। घटना के समय छोटेलाल का भतीजा जयचंद पास में ही गाय चरा रहा था, उसने सुरेश को भागते देखा। घायल छोटेलाल को अस्पताल में भर्ती कराया, जहां समय पर उपचार मिलने से उसकी जान बच गई। अगले दिन राजपुर थाने में अभियोग पंजीकृत किया गया। तब पुलिस ने सुरेश को गिरफ्तार कर जेल भेजा। मामले में आरोप पत्र भी दाखिल किया गया। इस बीच उसे जमानत मिल गई।

तीन जुलाई 1982 को अदालत ने उस पर आरोप भी तय कर दिए। वर्ष 1985 तक सुरेश अदालत में पेशी पर भी आता रहा। इस दौरान छोटेलाल और जयचंद समेत तीन की गवाही भी हो चुकी थी, लेकिन तभी वह अचानक गायब हो गया। अदालत ने कई बार उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए। आखिरकार उसे फरार घोषित कर दिया गया। उसे दोबारा 12 सितंबर 2018 को पकड़ा गया। इसके बाद दोबारा से शुरू हुई सुनवाई के बाद शनिवार को उसे अदालत ने दोषी करार देते हुए सात साल कैद की सजा सुनाई। सुरेश पर अदालत ने 30 हजार रुपये का अर्थदंड भी लगाया है, जिसे अदा न करने पर तीन वर्ष की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।

जमीन की रजिस्ट्री करने के दौरान चढ़ा हत्थे

सुरेश ने जिस समय वारदात को अंजाम दिया, उस समय उसकी उम्र करीब 28 साल थी। लगभग 33 साल तक फरार रहा। इतने साल तक कुछ पता न चलते पर पुलिस भी मानने लगी थी सुरेश की कहीं मौत न हो गई हो। सरकारी अधिवक्ता ने बताया कि सितंबर 2018 में वह चंद्रौटी स्थित अपनी पुश्तैनी जमीन बेचने के लिए आया। इस बात की भनक पुलिस को लगी और उसे 12 सितंबर 2018 को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर दिया। इस समय सुरेश की उम्र 67 साल के करीब है। 

हिमाचल में सुरेश बन गया था सूरज

देहरादून से फरार होने के सुरेश हिमाचल चला गया। उसने वहां सूरज बहादुर निवासी वार्ड नंबर तीन पुराना बाजार, तहसील ज्वालामुखी चकबन कालीधर ज्वालामुखी-दो कांगड़ा हिमाचल प्रदेश के नाम पहचान पत्र बनवा लिया। इसी पहचान के साथ उसने सूमा देवी नाम की युवती से शादी कर ली, लेकिन अपनी पिछली जिंदगी के बारे में कुछ नहीं बताया। सूमा ने पति सुरेश उर्फ सूरज के बचाव में अदालत में गवाही भी दी थी।

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