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उत्तराखंड में होगा पाम की विभिन्न प्रजातियों का संरक्षण, पढ़िए पूरी खबर

पाम की विभिन्न प्रजातियों का अब उत्तराखंड में भी संरक्षण होगा। वन विभाग के अनुसंधान वृत्त ने इसकी पहल की है।

By Edited By: Published: Wed, 17 Apr 2019 03:01 AM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 08:50 PM (IST)
उत्तराखंड में होगा पाम की विभिन्न प्रजातियों का संरक्षण, पढ़िए पूरी खबर
उत्तराखंड में होगा पाम की विभिन्न प्रजातियों का संरक्षण, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, केदार दत्त। अरब से दुनियाभर में फैली पाम की विभिन्न प्रजातियों का अब उत्तराखंड में भी संरक्षण होगा। वन विभाग के अनुसंधान वृत्त ने इसकी पहल की और इसी के फलस्वरूप हल्द्वानी में अस्तित्व में आया है उत्तराखंड का पहला 'पामेटम'। वहां विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके कुमाऊं पाम (टकील पाम) के अलावा पाम की 33 प्रजातियों के पौधे रोपित किए गए हैं। 

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वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक पामेटम का मकसद पाम के संरक्षण के साथ ही पर्यावरण को महफूज रखने में इसके योगदान का अध्ययन करना है। निकट भविष्य में यह पहल शोधकर्ताओंके लिए भी लाभकारी साबित होगी। पाम, जिसे हम ताड़ वृक्ष के रूप में भी जानते हैं, मुख्य रूप से अरब का पौधा है। भारत, श्रीलंका, वर्मा में भी बड़ी संख्या में पाम के पेड़ हैं। 

माना जाता है कि अरब के प्राचीन नगर पामीरा के नाम पर ही इस पौधे का नामकरण हुआ। पामेसी-एरीकेसिएसी कुल के पाम का मतलब अक्सर कोकोनट, खजूर, सुपारी, आरिका पाम, बोतलपाम या रॉयल पाम नाम से जानते हैं, जबकि दुनियाभर में पाम की 3000 प्रजातियां पाई जाती हैं। तैलीय और ड्राइफू्रट के लिए उपयोगी होने के साथ ही पाम शोभादार वृक्ष भी है।

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में टकील पाम के पौधे हैं, जिन्हें कुमाऊं पाम के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में यह विलुप्ति के कगार पर है। वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि कुमाऊं पाम के अस्तित्व को बचाए रखने के मद्देनजर ही पामेटम की स्थापना की अवधारणा ने जन्म लिया। हल्द्वानी में उत्तराखंड वानिकी प्रशिक्षण अकादमी के परिसर के पूर्वी छोर में एक हेक्टेयर क्षेत्र में बनाए गए पामेटम इसी वर्ष फरवरी में पाम की 33 प्रजातियां रोपित की गई। 

उन्होंने कहा कि पामेटम का उद्देश्य पाम की विभिन्न प्रजातियों का संरक्षण, पाम के प्रदर्शन स्थल के जरिये जनसामान्य को इसकी खूबियों से अवगत कराना और हवा को साफ रखने में इसकी भूमिका का अध्ययन करना है। यह प्रदेश में पाम के संरक्षण का पहला प्रयास है।

पामेटम में रोपी गई प्रजातियां 

मैटालिक, सिंकटोक, जामिया, चाइनीज, सुपारी, यूरोपियन फैन, टिंगल, ग्रीन विचिया, बोतल, फोस्ट, ब्रोम, सिकटोप, फॉक्सटेल, वाइल्ड सागो, कारपेंटरिया, टैनेरा, कोकोनट, रेडनेक, गोल्डन केन, हाइडिकी, स्पिंडल, खासी, लेडी, जोमिया, नोलिना, टकील, वासिंगटोनिया, सागो, सागो कल्टीवेटेड, सोपामेटो, बुश, डेट और क्वीन लैंड।  

जैव विविधता में अहम भूमिका पाम को वायु स्वच्छक माना जाता है। यह वायु के वेग को कम कर आंधी-तूफान से होने वाली क्षति को रोकने में भी सहायक है। आइएफएस चतुर्वेदी बताते हैं कि क्षेत्र की सुंदरता बढ़ाने के साथ ही पाम भूमि को उर्वरा शक्ति प्रदान कर जैव विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दक्षिण भारत में पाम आर्थिकी का मुख्य स्रोत है। यह कठोर वृक्ष है, जो अधिक वर्षा, गर्मी अथवा सूखाग्रस्त परिवेश में भी स्थापित हो जाता है।

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