डेढ़ माह बाद भी अंधेरे में डूबा रेलवे ओवर ब्रिज, दुर्घटनाओं का खतरा
हरिद्वार बाईपास रोड पर पर जिस रेलवे ओवर ब्रिज (आरओबी) का लोकार्पण चार मार्च को किया गया था उस पर पथ प्रकाश की व्यवस्था अब तक नहीं की जा सकी है।
देहरादून, जेएनएन। हरिद्वार बाईपास रोड पर पर जिस रेलवे ओवर ब्रिज (आरओबी) का लोकार्पण चार मार्च को किया गया था, उस पर पथ प्रकाश की व्यवस्था अब तक नहीं की जा सकी है। वहीं, सर्विस रोड समेत तमाम कई कार्य अब भी होने बाकी हैं।
दूसरी तरफ रिस्पना पुल की तरफ वाली एप्रोच रोड के पास के यूटर्न (कट) को अब तक खुला रखा गया है, जिस पर से गुजर रहे एक वाहन को बचाने के चक्कर में रोडवेज की एक बस पलट चुकी है और कभी भी यहां पर बड़ा हादसा हो सकता है।
आरओबी का जब लोकार्पण किया गया था, तब इस पर बिजली के 33 ही खंभे लग पाए थे। इसके विपरीत जरूरत 64 खंभों की थी। इसके बाद पूरे खंभे तो लगा दिए गए, मगर बिजली का कनेक्शन अब तक नहीं मिल पाया है।
ऐसे में सर्विस रोड से लेकर ब्रिज पर से गुजरने वाले वाहनों को पर्याप्त रोशनी नहीं मिल पा रही है। इससे आरओबी के पैराफिट व डिवाइडर ढंग से न दिख पाने के चलते हादसों को न्योता मिल रहा है।
खुला कट बंद करना इसलिए जरूरी
रिस्पना पुल की तरफ से आते हुए दायीं तरफ की एप्रोच रोड के मुहाने पर अजबपुर की तरफ वाली सड़क भी जुड़ रही है। गंभीर यह कि यहां पर सड़क के कट को अब भी बंद नहीं किया गया है। ऐसे में आरओबी से नीचे उतर रहे वाहन अपनी रफ्तार में आ रहे और दूसरी तरफ इससे अनजान अजबपुर की तरफ से आने वाले वाहन भी बिना कट के सड़क पार कर रहे हैं।
इससे इस स्थल पर वाहनों की टक्कर होने का खतरा बढ़ गया है। कट खुला होने से आरओबी के शुरुआत में ही एक अघोषित जंक्शन सा बन गया है और किसी भी दिशा के वाहन यहां पर से आरपार हो रहे हैं।
राजमार्ग खंड के अधिकारी अपना रोना रो रहे हैं कि विधानसभा सत्र के दौरान अजबपुर की तरफ वाहनों का रुख मोड़ दिया जाता है। ऐसे में पुलिस ने इस कट को बंद करने के लिए मना कर रहे हैं। यदि यहां पर दुर्घटना की आशंका बनी तो कट को बंद करने पर निर्णय लिया जाएगा। अफसरों की यह बातें बताती हैं कि जब कोई बड़ा हादसा होगा, तब कुछ सोचा जाएगा।
मोहकमपुर आरओबी पर छोटे पैराफिट से खतरा
मोहकमपुर के रेलवे ओवर ब्रिज की सर्विस रोड और पुल पर चढ़ने वाले स्थान को लेकर वाहन चालक असमंजस में रहते हैं। इसकी वजह है तकनीकी रूप से राजमार्ग की चौड़ाई का सही न होना। क्योंकि जब भी वाहन किसी दिशा में आरओबी की तरफ बढ़ते हैं तो उनका झुकाव सर्विस रोड की तरफ होता है। इसके चलते कई दफा वह हड़बड़ी में पुल पर चढ़ते हैं और अक्सर वाहनों के छोटे पैराफिट के ऊपर चढऩे का खतरा बना रहता है।
राजमार्ग खंड के अधिशासी अभियंता ओपी सिंह का कहना है कि पैराफिट की शुरुआती ऊंचाई मानकों के अनुरूप ही कम रखी जाती है। हालांकि, जिस तरह से राजमार्ग की चौड़ाई है, उसके अनुरूप इस तकनीकी बाध्यता का पालन करने की जरूरत नहीं थी। यदि शुरुआत से ही पैराफिट को ऊंचा बनाया जाता तो वाहन चालक दूर से ही तय कर सकते कि सामने सर्विस रोड की तरफ जाना है या पुल पर चढ़ना है। ऐसा न हो पाने की दशा में यह निर्णय उन्हें हड़बड़ी में लेना पड़ रहा है।
सरकार ने ली बल्लीवाला की सुध
करीब ढाई साल के छोटे अंतराल में ही बल्लीवाला फ्लाईओवर पर 13 मौतों के बाद आखिरकार सरकार ने इसकी सुध ले ही ली। खूनी फ्लाईओवर के रूप में कुख्यात को हो चुके इस संकरे फ्लाईओवर का मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अधिकारियों के साथ जायजा लेंगे।
जागरण शुरुआत से ही फ्लाईओवर के मानकों के विपरीत निर्माण और इसकी तकनीकी खामियों को लेकर प्रमुखता से समाचार प्रकाशित करता रहा है। हाईकोर्ट भी खूनी फ्लाईओवर का संज्ञान ले चुका है और कोर्ट के आदेश पर ही यहां पर एक और डबल लेन फ्लाईओवर के निर्माण की संभावनाएं तलाशी गईं।
यह बात और है कि लोगों की सुरक्षा के आगे निर्माण की लागत को बहुत अधिक आंकते हुए शासन ने इस रिपोर्ट को डंप कर रखा है। बीते बुधवार को तड़के जब इस फ्लाईओवर पर हादसे में एक और युवक की मौत हुई तो जागरण ने सिस्टम को झकझोरते हुए खबर प्रकाशित की। खबर में बताया गया कि किस तरह शासन 110 करोड़ रुपये की राशि को लोगों की जान से अधिक आंक रहा है।
साथ ही बताया गया कि किस तरह कई दफा चेताने के बाद भी अधिकारियों ने फोर-लेन में स्वीकृति के बाद भी इसका निर्माण डबल लेन में जारी रखा। इस अनदेखी की कीमत अब लोगों को चुकानी पड़ रही है। हालांकि, देर से ही सही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसका संज्ञान लिया और स्वयं इसका दौरा करेंगे। उनके निरीक्षण के दौरान लोनिवि व जिला प्रशासन के अधिकारी भी साथ रहेंगे।
इसलिए जरूरी है एक और फ्लाईओवर महज डबल लेन फ्लाईओवर पर दोनों तरफ के वाहन गुजरते हैं। ऐसे में एक तरफ महज सिंगल लेन होने के चलते मोड़ वाले हिस्सा पर वाहन दुर्घटाग्रस्त हो जाते हैं। यदि यहां पर एक और फ्लाईओवर बन जाए तो एक फ्लाईओवर से एक ही दिशा वाले वाहन गुजरेंगे और यातायात सुगम हो पाएगा।
फिजिबिलिटी रिपोर्ट में इस तरह बनाया गया खाका
-जमीन अधिग्रहण पर करीब 90 करोड़ रुपये का खर्च आएगा और लगभग 7000 वर्गमीटर जमीन का अधिग्रहण करना होगा। इसमें यूटिलिटी शिफ्टिंग का खंर्च भी शामिल है।
-दूसरी तरफ फ्लाईओवर के निर्माण में महज 20 करोड़ रुपये का ही खर्च आंका गया है।
फ्लाईओवर बना तो यह होगा स्वरूप
-लंबाई, करीब 800 मीटर -एप्रोच रोड, दोनों तरफ करीब 100-100 मीटर -चौड़ाई, 8.50 मीटर (डबल लेन)
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