प्रदेश में फिर से होगा भूमि बंदोबस्त
राज्य ब्यूरो, देहरादून: प्रदेश में भूमि संबंधी दस्तावेजों के अभाव भूमि विवाद लगातार बढ़ रहे हैं। वहीं, पर्वतीय चकबंदी के लिए सरकार भूमि संबंधी कोई लिखित जानकारी न होने के कारण अभी असमंजस की स्थिति में है। इन्हीं तमाम कारणों को देखते हुए अब सरकार एक बार फिर प्रदेश में नए सिरे से भूमि बंदोबस्त की दिशा में कदम उठा रही है। इसके लिए सरकार ने सभी से सुझाव आमंत्रित किए हैं ताकि इस दिशा में कदम उठाया जा सके। इसके अलावा सरकार ने प्रदेश में नया आबाद ग्रांट एक्ट को फिर से लागू करने के साथ ही भू-कानून के लिए एक समिति के गठन करने का भी निर्णय लिया है।
शनिवार को पत्रकारों से बातचीत के दौरान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भूमि बंदोबस्त को लेकर सरकार की मंशा को मीडिया के साथ साझा किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में देहरादून को छोड़कर हर जगह वर्ष 1962-63 में अंतिम बार भू-बंदोबस्त हुआ था। पिछले पचास सालों में काफी बदलाव हुए हैं। इस दौरान निजी भूमि, वन भूमि व ग्राम पंचायत की भूमि को लेकर लगातार विवाद हो रहा है। नतीजतन इस समय सैकड़ों मामले कोर्ट में चल रहे हैं। इनकी सारी स्थिति स्पष्ट हो सके, इसके लिए अब भूमि-बंदोबस्त की प्रक्रिया फिर से शुरू करने की तैयारी कर रही है। ग्राम पंचायतों की सेटेलाइट व मैन्युअल मैपिंग इसी कड़ी का हिस्सा हैं। इसके तहत नदी-नालों का भी सीमांकन किया जाएगा। इसके लिए सरकार सभी जानकारों से सुझाव आमंत्रित कर रही है।
इससे पहले मुख्यमंत्री ने इस मसले पर राजस्व अधिकारियों के साथ बैठक की। बैठक में राजस्व मंत्री यशपाल आर्य ने बताया कि केंद्र सरकार से राष्ट्रीय भूमि आधुनिकीकरण कार्यक्रम के तहत 23 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए हैं। इस योजना में भूमि बंदोबस्त कार्यक्रम भी शुरू किया जाएगा।
नया आबाद ग्रांट एक्ट लागू करने के आदेश
देहरादून: प्रदेश सरकार अब एक बार फिर प्रदेश में नया आबाद ग्रांट एक्ट सख्ती से लागू कर रही है। इसके तहत एसडीएम को जरूरतमंदों को भूमि आवंटित करने का अधिकार दिया गया है। इसके तहत एसडीएम बीपीएल, भूमि हीन और दलितों को 180 वर्ग गज भूमि आवंटित कर सकेंगे इसके लिए आदेश जारी कर दिए गए हैं। जिलाधिकारियों को भूमिहीनों को भूमि आवंटित करने के लिए टारगेट दिए जाएंगे।
भू-कानून के अध्ययन को समिति गठित
देहरादून- सरकार ने ब्रिटिशकाल से चले आ रहे भू-कानूनों का अध्ययन करने के लिए एक विधिक समिति का गठन किया है। इस समिति में राजस्व के जानकार और वकीलों को शामिल किया गया है। यह समिति भू-कानून की पेचीदगियों की एक रिपोर्ट बनाएगी। इसके अलावा यह सुझाव भी देगी कि किन कानूनों में बदलाव किया जाना है व किन कानूनों को खत्म किया जाना है।