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धर्मेंद्र और सायरा बानो ने यहां बिताए थे तीन दिन, आज ये हो गया खंडहर

मशहूर फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र व अभिनेत्री सायरा बानो का आशियाना रहा देहरादून जिले के कालसी ब्लाक की कोटी कॉलोनी का फील्ड हॉस्टल खंडहर हो रही हैं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 25 Apr 2017 10:21 AM (IST)Updated: Wed, 26 Apr 2017 05:03 AM (IST)
धर्मेंद्र और सायरा बानो ने यहां बिताए थे तीन दिन, आज ये हो गया खंडहर
धर्मेंद्र और सायरा बानो ने यहां बिताए थे तीन दिन, आज ये हो गया खंडहर

चकराता, [भीम सिंह चौहान]: साठ के दशक के आखिरी वर्ष में तीन दिन तक मशहूर फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र व अभिनेत्री सायरा बानो का आशियाना रहा देहरादून जिले के कालसी ब्लाक की कोटी कॉलोनी का फील्ड हॉस्टल इन दिनों अवैध खनन में इस्तेमाल हो रहे ट्रैक्टर-ट्राली व छोटे वाहनों का अड्डा बना हुआ है। 

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सिंचाई विभाग के अधीन इस हॉस्टल की दशा देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कभी रुपहले पर्दे के हीमैन ने यहां वक्त गुजारा होगा। जिम्मेदार विभाग की लापरवाही के चलते हॉस्टल के साथ ही उससे लगा मिनी स्टेडियम भी खस्ताहाल पड़ा है।

वर्ष 1965 में कोटी-इच्छाड़ी जल विद्युत परियोजना निर्माण के दौरान निरीक्षण करने वाले अधिकारियों के ठहरने के लिए आठ कमरों का आलीशान फील्ड हॉस्टल बनाया गया था। वर्ष 1969 में धर्मेंद्र व सायरा बानो अभिनीत फिल्म 'आदमी और इंसान' के कुछ हिस्से की शूटिंग देहरादून जिले के जौनसार-बावर परगने व पछवादून के डाकपत्थर बैराज में की गई थी। शूटिंग के दौरान धर्मेंद्र व सायरा बानो ने तीन दिन इसी फील्ड हॉस्टल में रहे। 

वर्तमान में यह फील्ड हॉस्टल अवैध खनन में लगे ट्रैक्टर व निजी वाहनों का अड्डा बन गया है। फील्ड हॉस्टल के आंगन में बने सभा मंडप में कभी अधिकारी परियोजना कर्मियों की समस्यायें सुना करते थे। कोटी कॉलोनी के हॉस्टल से कुछ ही दूरी पर स्थित मशहूर शीश महल भी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। जबकि, इन दोनों ही भवनों को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित कर क्षेत्र के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता था, लेकिन जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते इस धरोहर के खंडहर में तब्दील होने की नौबत आ गई है।

सिंचाई विभाग के डाकपत्थर बस्ती एवं संचार खंड के अधिशासी अभियंता पीएन राय के अनुसार जिस समय विद्युत परियोजनाओं को जल विद्युत निगम को हस्तांतरित करने के बाद परिसम्पत्तियां सिंचाई विभाग के पास ही रह गई थी, लेकिन इन परिसम्पत्तियों के रखरखाव के लिए कोई बजट नहीं मिला। इस संबंध में लगातार उच्चाधिकारियों से भी अनुरोध किया जाता रहा है, लेकिन हालात जस की तस रहे। 

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