उत्तराखंड के सपूत ने देश की रक्षा में दी अपने प्राणों की आहूति
भूमि की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे दी। दून के चंद्रबनी निवासी राइफलमैन शिशिर मल्ल बारामुला (कश्मीर) के राफियाबाद में आतंकियों से लोहा लेते शहीद हो गए। शहीद का पार्थिव शरीर शुक्रवार सुबह उनके पैतृक आवास लाया जाएगा।
देहरादून। भूमि की रक्षा में अपने प्राणों की आहूति दे दी। दून के चंद्रबनी निवासी राइफलमैन शिशिर मल्ल बारामुला (कश्मीर) के राफियाबाद में आतंकियों से लोहा लेते शहीद हो गए। शहीद का पार्थिव शरीर शुक्रवार सुबह उनके पैतृक आवास लाया जाएगा।
सुरक्षाबलों ने बुधवार को राफियाबाद में नौ घंटे चली भीषण मुठभेड़ में आतंकी संगठन लश्कर-ए-इस्लाम के आतंकी को मार गिराया था। इस मुठभेड़ में 32 राष्ट्रीय राइफल्स के शिशिर मल्ल शहीद हो गए। शिशिर का परिवार यहां चंद्रबनी में रहता है। शिशिर की शिक्षा-दीक्षा राजा राममोहन राय अकेडमी से हुई। पिता सूबेदार मेजर स्व. सुरेश मल्ल के ही नक्शे कदम पर चलते हुए वह वर्ष 2005 में फौज में भर्ती हुए। उसी 3/9 जीआर का हिस्सा बने जिससे पिता सेवानिवृत्त हुए थे। दस साल की सेवा में अपने साहस और जज्बे से शिशिर ने एक अलग मुकाम हासिल किया। अब देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देकर वह सदा-सदा के लिए अमर हो गए हैं। उनके घर ढांढस बंधाने वालों का तांता लगा है। सहसपुर विधायक सहदेव पुंडीर, पूर्व ब्लाक प्रमुख विपिन कुमार समेत कई लोगों ने परिवार को सांत्वना दी।
सैन्य परम्परा की जीवंत मिसाल
मल्ल परिवार सैन्य परम्परा की जीवंत मिसाल है। शिशिर के पिता सुरेश मल्ल सेना से सूबेदार मेजर के पद पर रिटायर हुए। उल्लेखनीय सेवा के लिए उन्हें ऑनरेरी कैप्टन का पद मिला। शिशिर के छोटे भाई सुशांत भी फौज में हैं। वह 11 जीआर में राइफलमैन के पद पर तैनात हैं। बड़े भाई की शहादत की खबर मिलते ही वह छुट्टी लेकर घर आ गए हैं।
परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
शहीद परिवार पर एक के बाद एक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। अभी कुछ माह पहले ही शिशिर के पिता का स्वर्गवास हुआ। पिता के देहांत पर वह घर आए थे। इससे पहले उनके नवजात पुत्र की मृत्यु हो गई। एक दुख से परिवार उबर नहीं पाया और दूसरा आन पड़ता है।
...मैं नवंबर में आऊंगा
मंगलवार ही शिशिर की अपनी बुआ के लड़के से फोन पर बात हुई थी। उन्होंने बताया था कि मैं नवंबर में छुट्टी आऊंगा। नवंबर में उनके पिता की बरसी है। उन्हें याद कर दोस्तों की भी आंखें नम हो जाती हैं। वह बताते हैं कि शिशिर फुटबॉल के बेहतरीन खिलाड़ी थे। वह हरफनमौला और यारों के यार थे।
माटी से जुड़ा रहा परिवार
शिशिर के परिवार का माटी से गहरा लगाव रहा है। उनके दादा कृषक थे और परिवार ने भी इस परम्परा को आगे बढ़ाया। पड़ोसी बताते हैं कि शिशिर के पिता को बकायदा बुआई-कटाई के वक्त छुट्टी लेकर आया करते थे। स्वयं खेत में काम करते थे। उनकी यही झलक शिशिर में दिखती थी। हरेक व्यक्ति परिवार की सादगी का कायल है।
घर में पसरा सन्नाटा
बुधवार शाम शिशिर की शहादत की खबर मिलते ही घर में मातम छा गया। मां रेणु और पत्नी संगीता का रो-रोकर बुरा हाल है। उनकी शादी को अभी करीब दो साल ही हुए हैं। पति के बिछड़ जाने के गम में संगीता बदहवास हो चुकी है।
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