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केदार धाम पर केंद्र को दबाव में लाने की मुहिम

-केदारपुरी को बसाने-पुनर्निर्माण कार्य मोदी सरकार के अपने हाथ में लेने से आशंकित राज्य सरकार -पुन

By Edited By: Published: Sat, 25 Oct 2014 01:00 AM (IST)Updated: Sat, 25 Oct 2014 01:00 AM (IST)
केदार धाम पर केंद्र को दबाव में लाने की मुहिम

-केदारपुरी को बसाने-पुनर्निर्माण कार्य मोदी सरकार के अपने हाथ में लेने से आशंकित राज्य सरकार

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-पुनर्निर्माण कार्यो पर संत समाज का प्रमाणपत्र लेकर केंद्र को दबाव में ला रही राज्य सरकार

-भाजपा के संतों से सरोकारों के मद्देनजर सीएम हरीश रावत ने खेला दांव

-कपाट बंद होने से ऐन पहले तक संतों की तीन खेप हेलीकाप्टर से कर चुकी है केदारनाथ दौरा

-पहले केदारनाथ पुनर्निर्माण योजना पर स्थानीय जनता और तीर्थ-पुरोहितों से भी रायशुमारी

रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून

देवों के देव महादेव के धाम केदारनाथ में पुनर्निर्माण का काम केंद्र की मोदी सरकार के अपने हाथ में लेने से आशंकित राज्य सरकार ने केंद्र को दबाव में लेने की मुहिम तेज की है। आपदा के कहर से तहस-नहस केदारपुरी को नए सिरे से बसाना हो, सड़कों का निर्माण हो या प्राचीन केदार मंदिर की सुरक्षा समेत तमाम कामकाज में ढिलाई को केंद्र मुद्दा न बना सके, लिहाजा सरकार की ओर से कराए जा रहे कार्यो पर संत समाज से मुहर लगाई जा रही है। बाबा रामदेव के साथ ही और हरिद्वार के प्रमुख संतों को सरकारी खर्च पर केदार दर्शन कराने को इसी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है। भाजपा के संतों से सरोकारों को देखते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यह दांव चल दिया है।

बाबा केदार की स्थली राज्य और केंद्र के बीच निकट भविष्य में सियासी खींचतान का सबब बनती नजर आ रही है। आपदा की त्रासदी को सवा साल गुजर चुका है, लेकिन केदारनाथ धाम का खोया वैभव लौटना तो दूर, पुनर्निर्माण की कार्ययोजना भी अंतिम रूप नहीं ले पाई है। हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण का मुद्दा बीते लोकसभा चुनाव में सियासी मुद्दा बन चुका है। भाजपा नेता इस मुद्दे को लेकर प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे हैं। पार्टी सांसदों के हमले से आशंकित कांग्रेस सरकार ने सीधे जवाब देने के बजाए संतों से प्रमाणपत्र लेना प्रभावी समझा।

ऐसे में सरकारी हलके में अंदेशा जताया जा रहा है कि केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण का जिम्मा केंद्र सरकार खुद अपने हाथ में न ले। केंद्र सरकार में अंदरखाने चल रही हलचलों और भाजपा के प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने जिसतरह केदारनाथ धाम की सुरक्षा और उसे फिर से बसाने के लिए राज्य सरकार के कामकाज के तौर-तरीकों को जिसतरह निशाना बनाया है, उससे इस अंदेशे को बल मिल रहा है। भाजपा के कई नेता उक्त कार्य केंद्र से अपने हाथ में लेने का अनुरोध भी कर चुके हैं।

ऐसी स्थिति में पूरे देश में नाकामयाबी की मुहर लगने का खतरा भांपते हुए राज्य सरकार ने चौतरफा हाथ-पांव मारने शुरू कर दिए हैं। केदारनाथ के पुनर्वास और पुनर्निर्माण कार्यो की योजना पर स्थानीय स्तर पर रायशुमारी और तीर्थ-पुरोहितों से बातचीत के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत ने संत समाज खासतौर पर भाजपा के नजदीक समझे जाने वाले संतों को भी अपने पीछे लामबंद करना शुरू कर दिया है। इसकी पहल कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले योगगुरु बाबा रामदेव को केदारनाथ मामले में अपने पाले में खींचकर की जा चुकी है। केदारनाथ धाम के कपाट भैयादूज यानि 25 अक्टूबर से बंद होने हैं। कपाट बंद होने से ऐन पहले 20 अक्टूबर को केदार धाम में कैबिनेट और उसके तुरंत बाद से सरकारी खर्च पर संत समाज को हवाई सेवा के जरिए केदार दर्शन कराए जा रहे हैं। कपाट बंद होने से एक दिन पहले तक हेलीकाप्टर के जरिए संतों की तीन खेप केदारनाथ का दौरा कर चुकी है। दर्शन करने के बाद बाबा रामदेव समेत तमाम संतों ने केदारनाथ धाम में कराए जा रहे कार्यो पर संतोष जताने के साथ ही राज्य सरकार की खुलकर तारीफ करने से नहीं चूक रहे हैं। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने संत समाज को अपने साथ जोड़कर केंद्र पर दबाव बढ़ाया ही, भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं। संत समाज से प्रमाणपत्र मिलने के बाद केदारनाथ धाम पर केंद्र के लिए अपने बूते पर कोई भी फैसला करना शायद ही मुमकिन हो।


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