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मिसाइल तकनीक में भारत पूरी तरह आत्मनिर्भर: पद्मश्री डॉ. सतीश कुमार

आइकॉल-2019 में डीआरडीओ के पूर्व महानिदेशक व एनआइटी कुरुक्षेत्र के वर्तमान निदेशक पद्मश्री डॉ. सतीश कुमार ने कहा कि मिसाइल तकनीक में भारत पूरी तरह आत्मनिर्भर है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Sun, 20 Oct 2019 09:25 AM (IST)Updated: Mon, 21 Oct 2019 07:28 AM (IST)
मिसाइल तकनीक में भारत पूरी तरह आत्मनिर्भर: पद्मश्री डॉ. सतीश कुमार
मिसाइल तकनीक में भारत पूरी तरह आत्मनिर्भर: पद्मश्री डॉ. सतीश कुमार

देहरादून, जेएनएन। भारत की मिसाइल क्षमता के आगे पाकिस्तान बौना है। उसने भले ही गजनवी मिसाइल से भारत को चुनौती देने के संकेत दिए हों, मगर भारत की पृथ्वी-2, पृथ्वी-3, धनुष और ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों के आगे यह कहीं नहीं ठहरती। आज भारत ने मिसाइल तकनीक के मामले में विश्वभर में अपनी अलग पहचान बना ली है। यह बात डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) के पूर्व महानिदेशक (मिसाइल एंड स्ट्रेटजिक सिस्टम्स) व एनआइटी कुरुक्षेत्र के वर्तमान निदेशक पद्मश्री डॉ. सतीश कुमार ने आइकॉल-2019 में कही।

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शनिवार को यंत्र अनुसंधान एवं विकास संस्थान (आइआरडीई) में ऑप्टिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की ओर से चार दिवसीय 43वीं इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन ऑप्टिक्स एंड इलेक्ट्रॉ-ऑप्टिक्स का आयोजन किया गया। देश-विदेश के रक्षा विशेषज्ञों को संबोधित करते हुए मिसाइल विशेषज्ञ डॉ. सतीश कुमार ने कहा कि ऑप्टिक्स और फोटोनिक्स 21वीं सदी की तकनीक है। न सिर्फ रक्षा क्षेत्र, बल्कि कई ट्रिलियन डॉलर के तमाम अन्य क्षेत्रों में यह क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सक्षम है। 

 

चिंता की बात यह है कि अभी भी देश की इस विषय की फैकल्टी सीमित हैं। इन्हें बढ़ाए जाने की जरूरत है। इतना जरूर है कि डीआरडीओ ने इसे समझा है और इसके माध्यम से व्यापक गतिविधियां शुरू की गई हैं। हालांकि, निकट भविष्य में इस तकनीक के युवा पेशेवरों की संख्या बढ़ाने के लिए शिक्षण संस्थानों में इसके पाठ्यक्रम बढ़ाए जाने की जरूरत है। दूसरी तरफ हमारे पास जो तकनीक है, उसे रक्षा क्षेत्र के लिए अधिक उपयुक्त बनाने के लिए और भी उन्नत तकनीकी सुधार की जरूरत है। 

इसके लिए विदेशी रक्षा प्रतिष्ठानों के साथ सहयोग बढ़ाने पर भी डॉ. सतीश कुमार ने बल दिया। वहीं, ऑप्टिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अनुराग शर्मा ने कहा कि रक्षा क्षेत्र के स्टार्टअप के लिए अधिक काम करने की जरूरत है। लिहाजा, ग्रांट देने वाली संस्थाओं को एक बार असफल प्रयोग पर ग्रांट बंद नहीं करनी चाहिए। बेहतर होगा कि 10 स्टार्टअप को ग्रांट देने की जगह एक स्टार्टअप को सफल बनाने का प्रयास करना चाहिए। 

इसी तरह सरकार भी रक्षा संस्थानों के अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के मामले में भी यही नजरिया रखेगी तो बेहतर परिणाम सामने आएंगे। इस अवसर पर सम्मेलन के मुख्य आयोजक और आइआरडीई के निदेशक लॉयनल बेंजामिन ने बताया कि पिछले कुछ साल के भीतर ही सेना को 7500 करोड़ रुपये के उत्पाद सौंपे जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि इस काम में विशेषकर देहरादून स्थित ऑप्टो इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री (ओएलएफ) से उन्हें निरंतर सहयोग मिलता रहा। सम्मेलन में आइआरडीई के पूर्व निदेशक डॉ. एसएस नेगी, अमिताभ घोष, सुधीर खरे समेत विश्वभर से आए 50 से अधिक रक्षा प्रतिष्ठानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 

रक्षा तकनीक में जल्द आत्मनिर्भर बनेगा भारत

डीआरडीओ के पूर्व महानिदेशक (मिसाइल एंड स्ट्रेटजिक सिस्टम्स) डॉ. सतीश कुमार ने कहा कि भारत तेजी से रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भर बनने की तरफ अग्रसर है। हालांकि, अभी भी तमाम उत्पादों की तकनीक दूसरे देशों से प्राप्त की जा रही है, मगर देश में निरंतर अनुसंधान जारी है। निकट भविष्य में रक्षा सेक्टर में अपना देश आत्मनिर्भर हो जाएगा।

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रक्षा उत्पादों की प्रदर्शनी में दिखाई क्षमता

कार्यक्रम के दौरान आइआरडीई परिसर में रक्षा उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। इस अवसर पर आइआरडीई समेत विश्वभर से आए रक्षा प्रतिष्ठानों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने रक्षा उत्पादों की क्षमता का प्रदर्शन किया 

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