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ध्यान और योग के इस केंद्र पर अमेरिकन म्यूजिकल ग्रुप 'बीटल्स' ने रची थीं यादगार धुनें

यही वह स्थान है जहां देश-विदेश से लोग भावातीत ध्यान करने आते थे। जहां अमेरिकन म्यूजिकल ग्रुप बीटल्स के चार सदस्यों जॉन लिनोन, पॉल मेकार्टनी, जॉर्ज हैरिशन व रिंगो स्टार 1967 में यहां पहुंचे। उन्होंने एक साल आश्रम में रहकर न सिर्फ भावातीत ध्यान योग की दीक्षा ली, बल्कि कई

By Thakur singh negi Edited By: Published: Sun, 15 Nov 2015 11:05 AM (IST)Updated: Sun, 15 Nov 2015 08:48 PM (IST)
ध्यान और योग के इस केंद्र पर अमेरिकन म्यूजिकल ग्रुप 'बीटल्स' ने रची थीं यादगार धुनें

देहरादून(केदार दत्त)। यही वह स्थान है जहां देश-विदेश से लोग भावातीत ध्यान करने आते थे, जहां अमेरिकन म्यूजिकल ग्रुप बीटल्स के चार सदस्यों जॉन लिनोन, पॉल मेकार्टनी, जॉर्ज हैरिशन व रिंगो स्टार 1967 में यहां पहुंचे। उन्होंने एक साल आश्रम में रहकर न सिर्फ भावातीत ध्यान योग की दीक्षा ली, बल्कि कई धुनें प्रकृति की गोद में बैठकर रचीं।

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हम बात कर रहे हैं ऋषिकेश स्थित राजाजी नेशनल पार्क में नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण चौरासी कुटी की। अब 30 साल बाद यह फिर से गुलजार होगी। कोशिशें रंग लाईं तो भावातीत ध्यान योग के विश्व प्रसिद्ध साधक महर्षि महेश योगी के 84 कुटियाओं वाले इस आश्रम को इसी माह के अंत तक सैलानियों के लिए खोल दिया जाएगा।
बता दें कि 30 वर्ष पहले इसे बंद कर दिया गया था। अब सैलानी वहां ध्यान योग की विरासत के साथ ही कुदरती नजारों से तो रूबरू होंगे ही, परिंदों के खूबसूरत संसार का भी करीब से दीदार कर सकेंगे। करीब डेढ़ किमी वन भूभाग में फैले आश्रम क्षेत्र में पक्षियों की 185 से अधिक प्रजातियां चिह्नित की गई हैं।


भावातीत ध्यान योग को दुनियाभर में पहचान देने वाले महर्षि महेश योगी ने 1960 के दशक में स्वर्गाश्रम लक्ष्मण झूला क्षेत्र में प्रकृति की गोद में आश्रम की स्थापना की। इसे नाम दिया गया शंकराचार्य नगर। आश्रम में बेजोड़ वास्तुकला का नमूना, गुंबदनुमा 84 कुटियाएं और दो दर्जन से अधिक भवन मौजूद हैं।
देशी-विदेशी योग साधक यहां आते और ध्यान का अभ्यास करते। धीरे-धीरे यह स्थल दुनियाभर में मशहूर हो गया और तीर्थनगरी ऋषिकेश आने वाले सैलानी चौरासी जाना नहीं भूलते थे।


1980 के दशक में राजाजी नेशनल पार्क का नोटिफिकेशन होने के बाद चौरासी कुटी भी इसके अंतर्गत आ गया। पार्क कानूनों के आड़े आने पर आश्रम में भी ध्यान-योग के प्रशिक्षण पर बंदिशें लगने लगीं। लंबी जद्दोजहद के बाद 1985 में कुटी को बंद कर दिया गया। तब से यह विरासत वीरान है। हालांकि, इसका आकर्षण सैलानियों में अब भी बरकरार है।
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