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दून अस्पताल में कट रही मरीजों की जेब

जागरण संवाददाता,देहरादून: दून अस्पताल में बाहर की दवा लिखने की मनाही के बावजूद चिकित्सक बाज नहीं आ र

By Edited By: Published: Sat, 25 Oct 2014 09:20 PM (IST)Updated: Sat, 25 Oct 2014 09:20 PM (IST)
दून अस्पताल में कट रही मरीजों की जेब

जागरण संवाददाता,देहरादून: दून अस्पताल में बाहर की दवा लिखने की मनाही के बावजूद चिकित्सक बाज नहीं आ रहे। अस्पताल में मिलने वाली नि:शुल्क दवा के बदले वे अभी भी बाहर की दवा लिख रहे हैं। जिससे मरीज की जेब कट रही है। उधर, अस्पताल प्रशासन बजट की कमी का रोना रो रहा है।

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मरीजों को अस्पताल से ही सस्ती दवाएं उपलब्ध करवाने के तमाम दावे किए जाते रहे हैं, लेकिन इस व्यवस्था को चिकित्सक ही धता बता रहे हैं। तमाम सख्ती के बावजूद वे बाहर की दवाएं लिखने से परहेज नहीं करते। यह स्थिति तब है, जब स्वास्थ्य मंत्री सहित प्रशासनिक अधिकारी समय-समय पर अस्पताल प्रशासन को बाहर की दवाएं न लिखने के दिशा-निर्देश देते रहे हैं। मगर, आदेश दरकिनार कर दिए जाते हैं और मरीजो को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। जबकि, होना यह चाहिए कि अस्पताल में दवा उपलब्ध न होने पर भी बाहर की दवा लिखने के बजाए वैकल्पिक दवा लिखी जानी चाहिए। हकीकत यह है कि रोजाना दून अस्पताल से ही कई पर्चे बाहर कैमिस्टों के पास पहुंच रहे हैं। इस बात की तस्दीक कैमिस्टों के काउंटर पर जाकर की जा सकती है। चिकित्सक ब्रांडेड दवा लिखते हैं और दिक्कत मरीज उठाते हैं। इस स्थिति में कैमिस्टों के साथ सांठगांठ से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। हालांकि, अधिकारी तर्क यह भी देते हैं कि कई बार मरीज ही स्वयं बाहर की दवा लिखने का अनुरोध करते हैं। कारण यह कि वो दवा के लिए लाइन में खड़े होने की फजीहत से बचना चाहते हैं। इसके अलावा मरीजों की बढ़ती तादाद और उस पर सीमित बजट अलग मुश्किल खड़ी कर रहा है।

जन औषधि केंद्र को चाहिए संजीवनी

मरीजों की सुविधा को अस्पताल में ही सरकारी दवा वितरण केंद्र के अलावा जन औषधि केंद्र भी बनाया गया है। यदि कोई दवा अस्पताल में उपलब्ध नहीं है तो जन औषधि केंद्र पर वह सस्ते दाम पर मिल जाती है। मगर, फिलहाल जन औषधि केंद्र को संजीवनी की दरकार है। पिछले कुछ समय में जन औषधि केंद्र पर बिक्री घटी है। जाहिर है कि चिकित्सक यहां से दवा लिखने के स्थान पर बाहर की दवा लिखने को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं।

'अस्पताल के पास बजट सीमित है और मरीजों की तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से एक अंतर उत्पन्न होता जाता है। उपचार हमें सभी का करना है। इस स्थिति में चिकित्सक को कई बार मजबूरी में भी ऐसा करना पड़ता है।'

-डॉ. आरएस असवाल, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक दून अस्पताल


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