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पैंक्रियाटाइटिस के इलाज का हब बनेगा उत्तराखंड

जागरण संवाददाता, देहरादून: क्रॉनिक पैंक्रियाटाइटिस के इलाज के लिए वैज्ञानिक आधार पर उत्तराखंड में जम

By Edited By: Published: Mon, 24 Nov 2014 01:07 AM (IST)Updated: Mon, 24 Nov 2014 01:07 AM (IST)
पैंक्रियाटाइटिस के इलाज का हब बनेगा उत्तराखंड

जागरण संवाददाता, देहरादून: क्रॉनिक पैंक्रियाटाइटिस के इलाज के लिए वैज्ञानिक आधार पर उत्तराखंड में जमीन तैयार की जा रही है। जन स्वास्थ्य के इस अभियान की नींव रखी पदमश्री वैद्य बालेंदु प्रकाश ने। इस काम में उनका साथ देगा उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट)। ये साथ मिलकर न सिर्फ बीमारी के आयुर्वेदिक उपचार का वैज्ञानिक आधार तलाशेंगे, बल्कि भविष्य की राह भी। इस अभियान को नाम दिया है 'नवप्रवर्तन का पथ-निदान से अवधारणा तक।'

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रविवार को ओएनजीसी के एएमएन घोष सभागार में तमाम विशेषज्ञ इसी संदर्भ में मंथन करने जुटे। मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि एलोपैथी जहां खत्म होगी है, आयुर्वेद वहां शुरू होता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड आयुर्वेद का घर हो सकता है। औषधीय पादपों के अधिकाधिक उत्पादन पर जोर देते हुए बताया कि किस तरह सरकार ने क्लस्टर डेवलपमेंट के सहारे उत्पादन से मार्केटिंग तक का इंतजाम किया है। सीएसई की महानिदेशक एवं पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते कहा कि आयुर्वेद को चारदिवारी में बंद नहीं रखा जाना चाहिए। यह आवश्यक है कि इसे वैज्ञानिक आधार मिले और उपचार वैश्विक स्तर पर पहुंचे। पूर्व केंद्रीय मंत्री एसआइ शेरवानी ने आयुर्वेद में शोधपरक व वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की बात की। एम्स के सीनियर फैकल्टी डॉ. वाइके गुप्ता ने बताया कि अभिलेखीकरण की कमी, मानकीकरण न होना, वैज्ञानिक प्रमाणिकता का अभाव और क्लीनिकल ट्रायल से दूरी के कारण आयुर्वेद पिछड़ गया। इन खामियों को दूर किया जाना चाहिए। इसके अलावा आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. एसके शर्मा, इमामी कंपनी के सीईओ डॉ. सीके कटियार, यूकॉस्ट के महानिदेशक राजेंद्र डोभाल, राज्यसभा सांसद मनोरमा शर्मा, केरल के पूर्व सांसद एमए बेबी आदि ने भी विचार व्यक्त किए। इस दौरान पैंक्रियाटाइटिस के इलाज से संदर्भित वैद्य बालेंदु की पुस्तक का विमोचन भी किया गया।

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सात साल का रोडमैप

वैद्य बालेंदु प्रकाश ने बताया कि पैंक्रियाटाइटिस के इलाज के लिए उन्होंने यूकॉस्ट के साथ मिलकर सात वर्ष का एक रोडमैप तैयार किया है। पहले तीन साल दवा का उत्पादन, फिर दो साल टॉक्सीसिटी की जांच और अंतिम दो वर्ष क्लीनिकल टेस्ट में लगेंगे। उम्मीद यह कि औषधि को वैज्ञानिक आधार मिलेगा और प्रमाणिकता भी। इस पर तकरीबन सात करोड़ का खर्च आएगा। कार्यक्रम में वैद्य बालेंदु प्रकाश से इलाज करा चुके कई लोगों ने भी अपने अनुभव साझा किए।


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